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बिहार की राजनीति में 'ओवैसी फैक्टर' कहां दिखते हैं?

बिहार में हमेशा ही जातीय समीकरणों का बोलबाला रहा है. पार्टियां जातीय आधार पर वोटों का ध्रुवीकरण करती रही हैं. मांझी के इस कदर महत्वपूर्ण हो जाने की एक बड़ी वजह ये भी रही. ऐसे में जबकि असदुद्दीन ओवैसी भी बिहार में दस्तक दे चुके हैं तब बिहार विधानसभा चुनाव का जंग दिलचस्प हो गया है.

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Published : Aug 28, 2020, 7:12 AM IST

Updated : Aug 31, 2020, 7:40 PM IST

पटना: बिहार के आगामी विधानसभा चुनावों में हैदराबाद के असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी 'ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन ने भी खम ठोकने का ऐलान कर दिया है. यह पार्टी बिहार के 22 जिलों की कुल 32 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. लेकिन क्या बिहार में यह पार्टी कुछ खास कर पाएगी?

माय फैक्टर का क्या होगा ?
माय यानी एम-वाई यानी मुस्लिम और यादव. आरजेडी नेता तेजस्वी यादव को इस बार भी अपने वोट बैंक पर सबसे ज्यादा भरोसा है. माय समीकरण के सहारे वो ज्यादा से ज्यादा वोट बटोरने की जुगत में हैं.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

ओवैसी की अब पूरे सीमांचल पर नजर
ओवैसी की बात करें तो उनकी नजर मुस्लिम बहुल सीमांचल के अररिया, किशनगंज, पूर्णिया और कटिहार पर है. वे मुस्लिम जनभावना (सेंटिमेंट) उभारना बखूबी जानते हैं. सीमांचल आरजेडी व कांग्रेस का गढ़ रहा है, लेकिन वहां ओवैसी की पैठ बढ़ती जा रही है.

विधानसभा उपचुनाव में जीत
पिछले साल अक्टूबर के विधानसभा उपचुनाव में एआईएमआईएम ने किशनगंज की उस मुस्लिम बहुल सीट को झटक कर चौंका दिया था, जिसपर कांग्रेस का कब्जा रहा था. कमरुल हुदा ने पिछले साल किशनगंज सीट पर हुए उपचुनाव में जीत हासिल की थी.

लोकसभा चुनाव में ही मिल गए थे संकेत
वहीं, 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में भी AIMIM ने किशनगंज लोकसभा क्षेत्र में शानदार प्रदर्शन किया था. लोकसभा चुनाव में भी किशनगंज से महागठबंधन के कांग्रेस प्रत्‍याशी मो. जावेद की एनडीए के जेडीयू उम्मीदवार महमूद अशरफ से कांटे की टक्‍कर हुई, जिसमें कांग्रेस प्रत्‍याशी की करीब 34 हजार वोटों से जीत हुई.

लालू यादव (फाइल फोटो)

54 सीटों पर मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण अहम
बिहार की 243 में से 54 ऐसी सीटें हैं जहां जीत हार मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण पर निर्भर करती है. ओवैसी की पार्टी ने घोषणा की है कि राज्य के 22 जिलों की 32 सीटों पर वह उम्मीदवार उतारेगी. एआईएमआईएम ने बलरामपुर, बरारी, अमौर, बैसी, जोकीहाट, समस्तीपुर, महौबा, बेतिया, रामनगर, ढाका, परिहार, औरंगाबाद जैसी सीटों पर अपना उम्मीदवार उतारेगी.

इस साल की चुनावी रणनीति
ओवैसी की पार्टी इस बार विधानसभा चुनाव में 32 से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने का पहले ही ऐलान कर चुकी है. ओवैसी की पार्टी ने ए प्लस, ए और बी 3 ग्रेड बनाए हैं. ग्रेड में चुनाव की रणनीति बनाई है. जिन सीटों पर मुस्लिम वोटर 32 फ़ीसदी से ज्यादा है उसे ए प्लस, इसमें 20 सीटें चिन्हित की गई है, जिनमें सीमांचल की 16 सीटें हैं. इसके अलावा दरभंगा की दो सीटें मधुबनी की एक सीट और चंपारण की एक सीट शामिल है. 30 फ़ीसदी जिन सीटों पर मुस्लिम मतदाता है उसे एक ग्रेड में रखा गया है और इसमें 14 सीटें शामिल है. वहीं जहां 15 से 20 फ़ीसदी मुस्लिम आबादी है, उसे बी ग्रेड में रखा गया है और ऐसी 16 सीटें हैं.

नीतीश कुमार (फाइल फोटो)

2015 में 6 सीटों पर लड़े थे चुनाव
बता दें कि वर्ष 2015 में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ने पहली बार बिहार विधानसभा चुनाव लड़ा था. लेकिन उनकी पार्टी के सभी छह उम्मीदवारों को हार का सामना करना पड़ा था. ओवैसी ने पहले मुस्लिम प्रभाव वाली सीमांचल की सभी 23 सीटों पर उम्मीदवार उतारने की घोषणा की थी, लेकिन बीजेपी से मिलीभगत के आरोपों के बीच उन्होंने महज छह उम्मीदवार ही उतारे थे.

सीमांचल की राजनीति पर होगा असर
फिलहाल, बिहार विधानसभा में अब एआईएमआईएम की पार्टी की एंट्री हो गई है और इसका असर सीमांचल की राजनीति पर साफ देखा जाएगा. देखना दिलचस्प होगा कि मुस्लिम वोटों को अपने पाले में करने की कोशिश करती रही आरजेडी और जेडीयू के लिए एआईएमआईएम की एंट्री कितना नुकसान पहुंचाती है.

Last Updated : Aug 31, 2020, 7:40 PM IST

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