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बिहार की राजनीति से गुमनाम हुए कई चेहरे, अवसरवाद की सियासत के लिए खोया जनाधार!

अमूमन विभिन्न मुद्दों पर एक राय रखने वाले सत्ता पक्ष और विपक्ष के नेता इस मामले पर एकमत देखे गए. सभी का कहना है कि जो नेता राजनीति में परिश्रम, धैर्य और विश्वास नहीं रख पाते वे कहीं के नहीं रहते.

बिहार की राजनीति से गुमनाम हुए कई राजनीतिक चेहरे

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Published : Aug 27, 2019, 6:52 PM IST

पटना: बिहार की राजनीति में पिछले दो दशकों से चमकने वाले सितारे आज गुमनामी के अंधेरे में है. जो नेता रोज खबरों की सुर्खियां बनते थे, आज उनका नाम तक लेने वाला कोई नहीं दिखता. प्रदेश की राजनीति में कई ऐसे चेहरे थे जो अचानक ही गुमनाम हो गए.

'सत्ता पक्ष और विपक्ष एकमत'
अमूमन विभिन्न मुद्दों पर एक राय रखने वाले सत्ता पक्ष और विपक्ष के नेता इस मामले पर एकमत देखे गए. सभी का कहना है कि जो नेता राजनीति में परिश्रम, धैर्य और विश्वास नहीं रख पाते वे कहीं के नहीं रहते.
'विश्वास सबसे ज्यादा जरूरी'
कांग्रेस नेता डॉ. अशोक राम मानते हैं कि राजनीति हो या फिर दूसरा कोई भी क्षेत्र, विश्वास सबसे ज्यादा जरूरी है. जो व्यक्ति किसी का विश्वास नहीं जीत सकता वह किसी भी क्षेत्र में सफल नहीं हो सकता. राम कहते हैं कि राजनीति में बहुत ही धैर्य रखना पड़ता है. जो व्यक्ति तत्काल फायदे के लिए अपनी पार्टी को छोड़ दूसरी पार्टी में शामिल होता है उन्हें कुछ भी हासिल नहीं होता.

पेश है रिपोर्ट
'अवसरवादी राजनीति घातक'राजद नेता और विधायक विजय प्रकाश का मानना है कि जिस दल ने आपको पहचान दी, नाम दिया. अपने फायदे के लिए ही उसे धोखा देना सही नहीं होता. जब कोई लंबे समय के बाद किसी का साथ छोड़ दूसरे के पास चला जाता है उस पर कोई भी विश्वास या भरोसा नहीं कर पाता. राजनीति में विश्वास और भरोसा ही सबसे बड़ी पूंजी है. लेकिन लोग अवसरवादी हो जाते हैं. इस कारण वे कहीं के नहीं रह जाते.'व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए खोते हैं पहचान'बीजेपी नेता अजीत चौधरी का कहना है कि राजनीति का मतलब ही समाजसेवा होता है. लेकिन वर्तमान समय में लोग समाज सेवा ना कर अपने और अपने परिवार की सेवा करने में जुट जाते हैं. व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए वे एक दल से दूसके दल में जाते रहते हैं. फिर अपनी पहचान खो देते हैं. यही वजह है कि राजनीति के चमकते सितारे भी गर्त में चले जाते हैं.

आइए नजर डालते है कुछ वैसे ही गुमनाम सितारों पर:-

1. नागमणि
एक जमाने में केंद्रीय मंत्री रह चुके नागमणि आज गुमनामी के अंधेरे में खो गए हैं. एक समय था जब नागमणि बड़ी ठाठ से कहते नजर आते थे कि वह देश के चारों सदन के सदस्य रहे हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में टिकट की चाह में रालोसपा से हटकर उन्होंने जेडीयू का दामन थामा था.
2. नरेंद्र सिंह
लालू और नीतीश राज में कई मुख्य पदों पर रहने वाले नरेंद्र सिंह भी आज कही नजर नहीं आते. पिछले लोकसभा चुनाव में इन्होंने एनडीए सरकार के खिलाफ गोलबंदी की थी. नरेंद्र सिंह कई महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री भी रह चुके हैं.
3. अरुण कुमार
जहानाबाद के पूर्व सांसद अरुण कुमार भी समय-समय पर कई महत्वपूर्ण पदों पर काबिज रह चुके हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से ही उन्होंने अपनी पार्टी रालोसपा से मुखालिफत कर ली थी.
4. रेणु कुशवाहा
नीतीश सरकार में कई विभागों में मंत्री रह चुकीं रेणु कुशवाहा, अब कहीं नहीं चमक रहीं. कुशवाहा का चेहरा पार्टी के महिला नेतृत्व में भी शुमार होने लगा था. इन्होंने भी टिकट के लिए पार्टी से बगावत की थी.

रेणु कुशवाहा

5. भीम सिंह
प्रवक्ता से मंत्री तक का सफर तय करने वाले भीम सिंह आज गुमनामी के अंधेरे में है. हालांकि वे बीजेपी के सदस्य जरूर हैं, लेकिन पार्टी ने उन्हें कोई महत्वपूर्ण पद नहीं दिया है. जिस वक्त भीम सिंह को नीतीश कुमार ने मंत्री पद दिया था तब सभी प्रवक्ताओं को लगने लगा था कि राजनीति में उनका भी करियर काफी लंबा है. लेकिन अब ऐसा कुछ नजर नहीं आता.

6. उदय नारायण चौधरी
जदयू के पूर्व नेता उदय नारायण चौधरी नीतीश कुमार के सरकार में विधानसभा अध्यक्ष रहे हैं. पार्टी में बगावत करने के बाद आज वह टिकट के लिए दर-दर भटक रहे हैं.

7. शरद यादव
राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शरद यादव भी जदयू से अलग होने के बाद कुछ खास नहीं कर पा रहे. पिछले लोकसभा चुनाव में उन्हें राजद के टिकट पर चुनाव लड़ना पड़ा था. जदयू से बगावत करने के बाद शरद यादव के कद में भी काफी गिरावट आई है.

8. नीतीश मिश्रा
नीतीश कैबिनेट के सबसे युवा मंत्री नीतीश मिश्रा भी गुमनामी के शिकार हो रहे हैं. कैबिनेट का हिस्सा रहते हुए मिश्रा ने काफी नाम कमाया था. लेकिन, गठबंधन की सरकार बनने के बाद ही वे जेडीयू से अलग होकर बीजेपी में शामिल हो गए थे. 2015 में विधानसभा चुनाव भी उन्होंने लड़ा था. लेकिन, नीतीश की नाराजगी के कारण 2019 के लोकसभा चुनाव का टिकट उन्हें नहीं मिला.

नीतीश मिश्रा

9. सम्राट चौधरी
राजद से कई समस्याओं को लेकर जेडीयू में शामिल होने वाले सम्राट चौधरी को नीतीश कुमार ने भारी-भरकम मंत्रालय का जिम्मा सौंपा था. बाद में चौधरी बीजेपी में शामिल हो गए. इन्हें भी नीतीश का प्रकोप झेलना पड़ा और इस साल लोकसभा चुनाव की दावेदारी खो बैठे.

10. रामकृपाल यादव
लालू के सबसे करीबी रामगोपाल यादव को भी इस बार चुनाव में जीतने के बावजूद कोई खास सम्मान नहीं मिला. 2014 के लोकसभा चुनाव में राजद से बीजेपी में शामिल होने वाले रामकृपाल को केंद्रीय राज्य मंत्री बनाया गया था, लेकिन इस बार लोकसभा चुनाव में जीतने के बावजूद इन्हें कोई पद नहीं दिया गया.

11. महबूब अली कैसर
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे महबूब अली कैसर लोजपा से सांसद बन गए हैं. 2014 में पहली बार सांसद बनने के बाद 2019 में उनके टिकट को लेकर काफी संशय की स्थिति बनी हुई थी. कांग्रेस जैसी बड़ी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बड़ा सम्मान माना जाता है. कैसर भले ही आज सांसद हों लेकिन वे एक नेता के तौर पर स्थापित नहीं हैं.

महबूब अली कैसर

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