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उपेंद्र कुशवाहा के लिए चुनौतियों भरा रहा साल 2019, बोले- अगली परीक्षा के लिए हैं तैयार

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Published : Dec 31, 2019, 7:04 AM IST

एनडीए से अलग हो महागठबंधन से चुनाव लड़ने के बाद कुशवाहा की पार्टी ने एक भी सीट नहीं जीती. अभी तक पार्टी में कोई भी बड़ा चेहरा भी शामिल नहीं हुआ. राजनीतिक विशेषज्ञ डीएम दिवाकर कहते हैं कि उपेंद्र कुशवाहा और उनकी पार्टी को 2019 में कोई खास लाभ नहीं हुआ.

उपेंद्र कुशवाहा
उपेंद्र कुशवाहा

पटना: बीता साल राष्ट्रीय लोक समता पार्टी और उपेंद्र कुशवाहा के लिए रोमांच से भरा रहा. एक ओर साल की शुरुआत में ही कुशवाहा ने केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफा देकर एनडीए से नाता तोड़ा तो वही महागठबंधन में शामिल होकर 5 लोकसभा सीट से उनकी पार्टी चुनाव लड़ी. साल 2019 राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के लिए कई मामलों में महत्वपूर्ण रहा.

एनडीए से अलग होकर कई सहयोगियों को भी खोया
रालोसपा ने एनडीए से अलग होकर अपने कई सहयोगियों को भी खो दिया. इनमें सबसे पहले बिहार सरकार के पूर्व मंत्री भगवान सिंह कुशवाहा का नाम आता है. भगवान सिंह कुशवाहा उपेंद्र कुशवाहा के नेतृत्व में राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के महासचिव के रूप में काम कर रहे थे, लेकिन कुशवाहा का एनडीए से अलग होना उन्हें रास नहीं आया. इसके बाद उन्होंने रालोसपा से अपना नाता तोड़ लिया. भगवान सिंह कुशवाहा ने नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जेडीयू में शामिल हो गए.

राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के बाहर लगा पोस्टर

कई दिग्गजों ने थामा जेडीयू का दामन
वहीं पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष पूर्व केंद्रीय मंत्री नागमणि ने तो उपेंद्र कुशवाहा को मुख्यमंत्री मेटेरिअल तक घोषित कर दिया था. नागमणि ने ही कुशवाहा के बीजेपी से अलग होने के फैसले का सबसे पहले समर्थन किया था. बाद में लोकसभा टिकट को लेकर नागमणि नाराज हो गये और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी से अलग होने का निर्णय ले लिया. नागमणि ने भी नीतीश कुमार की जेडीयू का दामन थाम लिया. इसके अलावा कुशवाहा के सबसे पुराने सहयोगी रामबिहारी सिंह ने भी उनका साथ छोड़ जदयू का साथ थामा.

राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का दफ्तर

सांसद रामकुमार शर्मा ने भी छोड़ा साथ
सीतामढ़ी से सांसद रहे रामकुमार शर्मा ने भी टिकट के कारण रालोसपा छोड़ दिया. हालांकि एनडीए से अलग होने तक रामकुमार शर्मा उपेंद्र कुशवाहा के साथ ही दिखते थे. लेकिन बाद में महागठबंधन के सीट बंटवारे में सीतामढ़ी सीट आरजेडी के खाते में जाने के कारण शर्मा नाराज हो गए थे.

उपेंद्र कुशवाहा पर लगे टिकट बेचने के आरोप
लोकसभा चुनाव के दौरान कुशवाहा पर कई टिकट बेचने के आरोप भी लगे. दरअसल मोतिहारी सीट पर पार्टी के महासचिव माधवानंद पहले से ही मेहनत कर रहे थे, लेकिन बाद में पार्टी के नेता प्रदीप मिश्रा ने उपेंद्र कुशवाहा को 90 लाख देने का दावा किया था जिसके बदले मोतिहारी सीट उन्होंने मांगी. लेकिन, मोतिहारी से आकाश सिंह ने चुनाव लड़ा. अकाश सिंह कांग्रेस के राज्यसभा सांसद अखिलेश सिंह के बेटे हैं.

उपेंद्र कुशवाहा के राजनीतिक सफर पर ईटीवी भारत की विशेष रिपोर्ट

कुशवाहा की सराहना
एनडीए से अलग हो महागठबंधन से चुनाव लड़ने के बाद कुशवाहा की पार्टी ने एक भी सीट नहीं जीती. अभी तक पार्टी में कोई भी बड़ा चेहरा भी शामिल नहीं हुआ. राजनीतिक विशेषज्ञ डीएम दिवाकर कहते हैं कि उपेंद्र कुशवाहा और उनकी पार्टी को 2019 में कोई खास लाभ नहीं हुआ. हालांकि जिस तरह से केंद्र सरकार में रहते हुए उन्होंने शिक्षा के मुद्दे पर हमला बोला वह सराहनीय कदम था.

उपेंद्र कुशवाहा का सकारात्मक रुख
वही अपनी पार्टी के मामले में उपेंद्र कुशवाहा कहते हैं कि बीता साल रालोसपा के लिए काफी महत्वपूर्ण था. उन्होंने कहा कि चुनाव में जीत और हार लगी रहती है. इससे किसी पार्टी को कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ता. वे कहते हैं कि पार्टी के कार्यकर्ता पहले से ज्यादा मजबूती से समाज के बीच काम कर रहे हैं. कुशवाहा आगामी वर्ष के लिए भी काफी आशान्वित हैं.

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