सिवान:आज भारत के प्रथम राष्ट्रपति (First President of India) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की 137वीं जयंती (137th Birth Anniversary of Dr Rajendra Prasad) है. इस मौके पर पर देश उन्हें याद कर रहा है. राजेन्द्र बाबू का जन्म 3 दिसम्बर 1884 को बिहार के तत्कालीन सारण जिले (अब सिवान) के जीरादेई नामक गांव में हुआ था. राष्ट्रपति के रूप में उनका कार्यकाल 26 जनवरी 1950 से 14 मई 1962 तक का रहा था.
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राजेन्द्र प्रसाद के पिता महादेव सहाय संस्कृत एवं फारसी के विद्वान थे और उनकी माता कमलेश्वरी देवी एक धर्मपरायण महिला थीं. राजेन्द्र बाबू की वेशभूषा बड़ी सरल थी. उनके चेहरे-मोहरे को देखकर पता ही नहीं लगता था कि वे इतने प्रतिभासम्पन्न और उच्च व्यक्तित्ववाले सज्जन हैं. देखने में वे सामान्य किसान जैसे लगते थे. मात्र 12 साल की उम्र में उनका विवाह राजवंशी देवी से हो गया था. डॉ. राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति महात्मा गांधी से काफी प्रभावित थे. गांधीजी के संपर्क में आने के बाद वह आज़ादी की लड़ाई में पूरी तरह से मशगूल हो गए. उन्होंने असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया. उनको 1930 में नमक सत्याग्रह में भाग लेने के दौरान गिरफ्तार कर लिया गया. 15 जनवरी 1934 को जब बिहार में एक विनाशकारी भूकम्प आया, तब वह जेल में थे. जेल से रिहा होने के दो दिन बाद ही राजेंद्र प्रसाद धन जुटाने और राहत के कार्यों में लग गए. 1939 में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के इस्तीफे के बाद कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित किया गया.
जुलाई 1946 को जब संविधान सभा को भारत के संविधान के गठन की जिम्मेदारी सौंपी गयी, तब डॉ. राजेंद्र प्रसाद को इसका अध्यक्ष नियुक्त किया गया. आजादी के ढाई साल बाद 26 जनवरी 1950 को स्वतंत्र भारत का संविधान लागू किया गया और डॉ. राजेंद्र प्रसाद को भारत के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में चुना गया. राष्ट्रपति के रूप में अपने अधिकारों का प्रयोग उन्होंने काफी सूझ-बूझ से किया और दूसरों के लिए एक नई मिशाल कायम की. राष्ट्रपति के रूप में 12 साल के कार्यकाल के बाद वर्ष 1962 में डॉ. राजेंद्र प्रसाद सेवानिवृत्त हो गए और उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया. सेवानिवृत्ति के बाद अपने जीवन के कुछ महीने उन्होंने पटना के सदाक़त आश्रम में बिताए. 28 फरवरी 1963 को डॉ. राजेंद्र प्रसाद का देहांत हो गया.