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आज प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की 137वीं जयंती - देशरत्न राजेन्द्र प्रसाद

प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की 137वीं जयंती (137th Birth Anniversary of Dr Rajendra Prasad) पर देश उनको नमन कर रहा है. उनके जन्म स्थान जीरादेई में भी कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है. हालांकि स्थानीय लोगों की शिकायत है कि आज भी देशरत्न राजेन्द्र प्रसाद (Deshratna Rajendra Prasad) के गांव का विकास नहीं हो पाया है. सरकार और प्रशासन के वादे जमीन पर नहीं उतर पाए हैं.

राजेन्द्र प्रसाद की जयंती
राजेन्द्र प्रसाद की जयंती

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Published : Dec 3, 2021, 6:02 AM IST

Updated : Dec 3, 2021, 8:10 PM IST

सिवान:आज भारत के प्रथम राष्ट्रपति (First President of India) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की 137वीं जयंती (137th Birth Anniversary of Dr Rajendra Prasad) है. इस मौके पर पर देश उन्हें याद कर रहा है. राजेन्द्र बाबू का जन्म 3 दिसम्बर 1884 को बिहार के तत्कालीन सारण जिले (अब सिवान) के जीरादेई नामक गांव में हुआ था. राष्ट्रपति के रूप में उनका कार्यकाल 26 जनवरी 1950 से 14 मई 1962 तक का रहा था.

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राजेन्द्र प्रसाद के पिता महादेव सहाय संस्कृत एवं फारसी के विद्वान थे और उनकी माता कमलेश्वरी देवी एक धर्मपरायण महिला थीं. राजेन्द्र बाबू की वेशभूषा बड़ी सरल थी. उनके चेहरे-मोहरे को देखकर पता ही नहीं लगता था कि वे इतने प्रतिभासम्पन्न और उच्च व्यक्तित्ववाले सज्जन हैं. देखने में वे सामान्य किसान जैसे लगते थे. मात्र 12 साल की उम्र में उनका विवाह राजवंशी देवी से हो गया था. डॉ. राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति महात्मा गांधी से काफी प्रभावित थे. गांधीजी के संपर्क में आने के बाद वह आज़ादी की लड़ाई में पूरी तरह से मशगूल हो गए. उन्होंने असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया. उनको 1930 में नमक सत्याग्रह में भाग लेने के दौरान गिरफ्तार कर लिया गया. 15 जनवरी 1934 को जब बिहार में एक विनाशकारी भूकम्प आया, तब वह जेल में थे. जेल से रिहा होने के दो दिन बाद ही राजेंद्र प्रसाद धन जुटाने और राहत के कार्यों में लग गए. 1939 में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के इस्तीफे के बाद कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित किया गया.

पटना के राजेंद्र संग्रहालय का हाल

जुलाई 1946 को जब संविधान सभा को भारत के संविधान के गठन की जिम्मेदारी सौंपी गयी, तब डॉ. राजेंद्र प्रसाद को इसका अध्यक्ष नियुक्त किया गया. आजादी के ढाई साल बाद 26 जनवरी 1950 को स्वतंत्र भारत का संविधान लागू किया गया और डॉ. राजेंद्र प्रसाद को भारत के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में चुना गया. राष्ट्रपति के रूप में अपने अधिकारों का प्रयोग उन्होंने काफी सूझ-बूझ से किया और दूसरों के लिए एक नई मिशाल कायम की. राष्ट्रपति के रूप में 12 साल के कार्यकाल के बाद वर्ष 1962 में डॉ. राजेंद्र प्रसाद सेवानिवृत्त हो गए और उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया. सेवानिवृत्ति के बाद अपने जीवन के कुछ महीने उन्होंने पटना के सदाक़त आश्रम में बिताए. 28 फरवरी 1963 को डॉ. राजेंद्र प्रसाद का देहांत हो गया.

हर साल की तरह इस बार भी डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की 137वीं जयंती पर सिवान में कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है. जीरादेई स्थित उनके पैतृक आवास पर जोर-शोर से तैयारी चल रही है. प्रशासनिक अधिकारी और कई बड़े नेता उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण करने पहुंचेंगे. वहीं उनका जन्म स्थान आजादी के 75 सालों बाद भी पूर्ण रूप से विकास की पटरी पर नहीं चढ़ सका है.

देखें रिपोर्ट

सिवान जिला मुख्यालय से करीब 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जीरादेई गांव की दशा और दिशा में कोई भी खास परिवर्तन नहीं हुआ है. जीरादेई रेलवे स्टेशन पर यात्रियों के बैठने के लिए बने दो चार बेंच और चबूतरों के अलावे कोई भी सुविधा नहीं है. ना तो यहां बड़ी गाड़ियों का ठहराव है और ना शौचालय और प्रतीक्षालय की व्यवस्था.

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वहीं, जीरादेई गांव में राजेंद्र बाबू की धर्मपत्नी राजवंशी देवी के नाम पर एक राजकीय औषधालय की स्थापना हुयी थी, लेकिन आज सरकार की उपेक्षा का शिकार होकर वह खंडहर में तब्दील हो गया है. हालांकि देशरत्न की गरिमा और उनकी धरोहर को बरकरार रखने की नीयत से केंद्र सरकार द्वारा जीरादेई स्थित डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के पैतृक मकान को पुरातत्व विभाग के सुपुर्द कर दिया गया है. जिस कारण देशरत्न का पैतृक मकान उनकी स्मृति शेष के रूप में बच गया है. राज्य सरकार ने इसे पर्यटन स्थल बनाने की घोषणा की थी, लेकिन इस दिशा में भी अब तक कोई कवायद शुरू नही हुई. इसके बावजूद इसके रोजाना यहां सैकड़ो की तादाद में पर्यटक और दर्शक आते हैं, जिनकी ख्वाईश है कि देशरत्न के मकान को सरकार कम से कम एक म्यूजियम अथवा लाईब्रेरी के रूप में तब्दील कर दे.

आपको बताएं कि प्रधानमंत्री ग्राम विकास योजना के तहत सिवान के तत्कालीन बीजेपी सांसद ओमप्रकाश यादव ने जीरादेई को गोद लिया था, लेकिन सांसद के गोद लेने के बाद भी जीरादेई का विकास नहीं हो पाया है. स्थानीय लोगों की मानें तो अधिकारी और नेताओं को सिर्फ जयंती पर जीरादेई और डॉ. बाबू की याद आती हैं. माल्यार्पण और श्रद्धांजलि के बाद वादों की इतिश्री कर देते हैं.

Last Updated : Dec 3, 2021, 8:10 PM IST

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