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बिहार के इस गांव में नहीं है कोई मुस्लिम परिवार, हिंदू करते हैं मस्जिद की देखभाल

नालंदा के बेन प्रखंड के मांड़ी गांव में हिंदू धर्मावलंबी ही सालों से मस्जिद की देखभाल कर रहे हैं. मुस्लिम धर्मावलंबी लोगों के पलायन के बाद हिंदू भाईयों ने मस्जिद की देखभाल का जिम्मा उठाया लिया.

गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल

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Published : Sep 1, 2019, 7:07 AM IST

नालंदाः एक तरफ जहां जाति, धर्म, संप्रदाय के नाम पर लोग आपस में एक-दूसरे से उलझ रहे हैं, मार-पीट कर रहे हैं. वहीं सांप्रदायिक सौहार्द और बेमिसाल गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल पेश कर रहा है नालंदा के बेन प्रखंड का मांड़ी गांव. यहां हिंदू धर्मावलंबी लोग एक मस्जिद की देखभाल कर रहे हैं.

नालंदा के बेन प्रखंड का मांड़ी गांव स्थित मस्जिद
हिंदू भाई करते हैं मस्जिद की देखभाल
बेन प्रखंड के मांडी गांव में हिंदू धर्मावलंबी ही सालों से मस्जिद की देखभाल कर रहे हैं. कभी इस गांव में मुस्लिम आबादी भी हुआ करती थी, लेकिन रोजगार और काम की तलाश में मुस्लिम धर्मावलंबी लोगों ने गांव से पलायन कर लिया. इसके बाद हिंदू भाईयों ने मस्जिद की देखभाल का जिम्मा उठाया लिया.
हिंदू भाई करते हैं मस्जिद की देखभाल

पेन ड्राइव के जरिए होती है अजान
गांव के ही बखोरी जमादार, गौतम प्रसाद और अजय पासवान ने मिलकर मस्जिद की देखभाल करनी शुरू कर दी. धार्मिक नियमानुसार ही मस्जिद की साफ-सफाई, मरम्मत के साथ-साथ हर दिन अजान दिलायी जाती है. दिलचस्प वाक्या यह भी है कि अजान नहीं जानने के कारण हिंदु समाज के लोगों ने उसे बंद नहीं होने दिया. बल्कि तकनीक का सहारा लेकर उपाय ढूंढ निकाला. अब यहां पेन ड्राइव के माध्यम से रोजाना पांच वक्त की अजान होती है.
पेन ड्राइव के जरिए होती है अजान
मस्जिद के पत्थरों से दूर होती है बीमारी
इस गांव में करीब 2000 लोगों की आबादी है. सभी लोग हिंदू धर्म से ताल्लुक रखते हैं. इस मस्जिद का निर्माण करीब 200 साल पहले हुआ था. लोगों का कहना है कि गांव में कोई भी शुभ कार्य होता है तो लोग पहले इस मस्जिद में जाकर इबादत करते हैं. ग्रामीणों का कहना है कि गांव में किसी को गाल फूलने की बीमारी होने पर मस्जिद के पत्थरों को सटाने से वह दूर हो जाती है. मुहर्रम के मौके पर यहां से ताजिया भी निकाला जाता है.
गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल यह गांव

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