नालंदा: बिहार के नालंदा जिले के एकंगरसराय प्रखंड मुख्यालय से तीन किमी दूर है द्वापरकालीन सूर्योपासना का केन्द्र औंगारी धाम. यहां का सूर्य मंदिर ( Sun Temple In Nalanda ) अनूठा है. शायद यह देश का इकलौता सूर्य मंदिर है, जिसका दरवाजा पश्चिम की ओर है. इस मंदिर की मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण के पौत्र राजा शाम्ब ने कुष्ठ रोग से निजात पाने के लिए यहां भी पूजा की थी. राजा ने ही यहां के सूर्य मंदिर तालाब का निर्माण कराया था. औंगारी धाम ट्रस्ट के अध्यक्ष राम भूषण दयाल कहते हैं कि सूर्यनगरी से कई पौराणिक कथाएं जुड़ी हैं.
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भगवान श्रीकृष्ण के पौत्र राजा शाम्ब ने यहां पूजा-अर्चना की थी. आज भी यहां के ऐतिहासक तालाब में स्नान करने से कुष्ठ रोग से निजात मिलती है. मान्यता है कि इसी रास्ते से एक बारात जा रही थी. कुछ बारातियों ने कहा कि अगर भगवान में शक्ति है तो मंदिर का दरवाजा पूरब से पश्चिम की ओर हो जाए. इतना कहते ही पूरब से दरवाजा पश्चिम की ओर हो गया, जो आजतक है.
मंदिर प्रबंधन के अध्यक्ष गंगाधार पांडे ने बताया कि कि पहले यह मूर्ति जंगलों में छिपी हुई थी. लेकिन समय के साथ कुछ सन्यासी यहां पहुंचे, जिनकी नजर इस मूर्ति पर पड़ी थी, जिसके बाद उन्होंने मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की और मंदिर का निर्माण कराया. लेकिन मुगल शासक औरंगजेब ने इस मंदिर को तोड़ दिया, लेकिन मूर्ति को नुकसान नहीं पहुंचा सके. उसके बाद सेनापति ने कहा कि आप में इतनी शक्ति है तो आपका मुंह पूरब से पश्चिम की ओर जाए, जिसके बाद भगवान की के कृपा से मंदिर का मुंह पश्चिम की ओर हो गया. जिसके बाद सभी सैनिक पत्थर के हो गये.
'इस मंदिर का मुख्य द्वार पश्चिम की ओर है. जबकि पहले पूरब दिशा की ओर था. आम तौर पर पश्चिम की ओर मंदिर का मुख्य द्वार नहीं होता. मंदिर के गर्भगृह में आदमकद प्रतिमा भगवान भास्कर के साथ भगवान विष्णु भी विराजमान हैं. जो भी लोग मन्नत लेकर यहां आते हैं, उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होती है. सभी रोगों को दूर करने के लिए ये भी मंदिर प्रसिद्ध है.':- गंगाधार पांडे, मंदिर प्रबंधन के अध्यक्ष
बताते चलें कि औंगारी धाम सूर्य मंदिर देश के 12 सूर्यपीठों में शामिल है. यहां अर्घ्य देने से श्रद्धालुओं को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. निर्धन को धन तो नि:संतान को संतान की प्राप्ति होती है. आज भी छठ के मौके पर देश के कोने-कोने से यहां श्रद्धालु अर्घ्य देने पहुंचते हैं. यहां आम दिनों में भी पूजा-अर्चना होती आ रही है. किसी भी दिन यहां पूजा शुभकारी है लेकिन रविवार को पूजा का विशेष महत्व है जो पूर्व पुराण में भी वर्णित है.
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