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2019 में बिहार ने खोया अपना नायाब 'हीरा', अलविदा कह गए वशिष्ठ नारायण

वशिष्ठ नारायण सिंह के निधन के बाद अब जाकर उनके सम्मान में भारत रत्न और यूनिवर्सिटी की मांग उठ रही है. देखना होगा जिन हुक्मरानों ने जीते जी वशिष्ठ नारायण सिंह को भुला दिया, वे उनके जाने के बाद उनकी शान में किए गए वादें कब तक पूरे करते हैं.

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Published : Dec 30, 2019, 6:14 AM IST

Updated : Dec 30, 2019, 10:14 AM IST

भोजपुर: बिहार ने महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह के रूप में इस साल अपना एक नायाब हीरा खो दिया. 14 नबंवर 2019 को बिहार विभूति का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया. इस नुकसान पर पीएम नरेंद्र मोदी से लेकर सीएम नीतीश कुमार तक ने गहरी संवेदना जताई. पूरा देश इस विभूति के आगे नतमस्तक हुआ, जिन्होंने अपने ज्ञान से पूरे विश्व को अपनी प्रतिभा का लोहा मानने पर मजबूर किया.

महान शख्सियत का अंत बेहद ही मार्मिक
वशिष्ठ बाबू ने भारत के ज्ञान का परचम पूरी दुनिया में लहराया. अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा में अपने हुनर का डंक बजाया, लेकिन ऐसी महान शख्सियत का अंत बेहद ही मार्मिक हुआ. स्किजोफ्रेनिया जैसी गंभीर बीमारी का शिकार हो कर अपनी सभी यादों, अपनी सभी उपलब्धियां भुला कर उन्होंने दुनिया को अलविदा कहा.

वशिष्ठ नारायण सिंह पर देखें विशेष रिपोर्ट.

1946 में हुआ था वशिष्ठ नारायण सिंह का जन्म
देश के महान गणितज्ञ और बिहार की शान डॉक्टर वशिष्ठ नारायण सिंह का जन्म भोजपुर के बसंतपुर में सन 1946 में हुआ था. पांच भाई बहनों में सबसे बड़े वशिष्ठ बाबू थे. सीता देवी,अयोध्या प्रसाद सिंह, हरिचंद्र नारायण सिंह और छोटी बहन मीरा देवी हैं. वशिष्ठ नारायण के पिताजी का नाम लाल बहादुर सिंह और मां का नाम लहासो देवी था. उनके करीबी बताते हैं जब वशिष्ट बाबू छोटे थे तो वह बसंतपुर के प्राथमिक विद्यालय में पढ़ने जाते थे. उस दौरान उन्हें पढ़ाई के अलावा खाने तक की फुर्सत नहीं मिलती थी. मां स्कूल से जबरदस्ती खींच कर घर लाती और उन्हें खाना खिलाती थी. छोटे वशिष्ठ को पढ़ाई और गणित से बचपन से ही गहरा लगाव रहा था.

वशिष्ठ नारायण सिंह का बिस्तर

नासा में भी काम किया बिहार विभूति वशिष्ठ बाबू ने
बिहार विभूति ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव के ही एक प्राथमिक विद्यालय से हासिल की. आगे की पढ़ाई के लिए नेतरहाट और दूसरे विद्यालयों में भी गए. जब वशिष्ठ बाबू पटना साइंस कॉलेज में पढ़ाई करते थे तभी कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जॉन कैली की नजर उन पर पड़ी थी. जॉन कैली ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और वशिष्ठ नारायण ने जॉन कैली के साथ लंबे वक्त तक काम किया. 1965 में वशिष्ठ बाबू अमेरिका चले गए. 1969 में उन्होंने कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से पीएचडी की और वॉशिंगटन विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर बन गए. उन्होंने नासा में भी काम किया लेकिन मन नहीं लगा और 1971 में भारत लौट आए.

वशिष्ठ नारायण सिंह का पैतृक निवास

कमरे की दीवारों पर लिखे हैं गणित के सूत्र
1973 में वशिष्ठ नारायण सिंह की शादी वंदना रानी से की गई. उसके कुछ साल बाद से ही उनके व्यवहार में परिवर्तन आने लगा और वे स्किजोफ्रेनिया बीमारी से पीड़ित हो गए. हालांकि पढ़ाई और गणित से लगाव के कारए वे तब भी वह किताब-कॉपी से दूर नही हुए. उनके कमरे की दीवारों पर तरह-तरह के गणित के सूत्र लिखे मिलते हैं

बिहार विभूति के घर में लगी उनकी तस्वीर

अपने देश ने ही वशिष्ठ नारायण सिंह को कर दिया पराया
बेहद दुखद है ये कि नासा में बतौर गणितज्ञ काम करने वाले और आइंस्टीन के सापेक्षता के सिद्धांत को चुनौती देने वाले वशिष्ठ नारायण सिंह को उनके अपने देश ने ही पराया कर दिया. प्रदेश में भी निधन के बाद पीएमसीएच प्रबंधन तक तय समय पर उन्हें एंबुलेंस भी मुहैया नहीं करवा सका. काफी देर तक उनका शव खुले आसमान के नीचे यूं ही पड़ा रहा. बाद में किरकिरी होती देख अस्पताल प्रबंधन ने जांच करने का रटा-रटाया जवाब देते हुए लीपापोती करने की कोशिश की. परिजनों ने भी पूरे घटनाक्रम पर अपनी नाराजगी जाहिर की.उनके भतीजे ने तो यहां तक कह दिया कि भारत में हुनर की कोई कद्र नहीं है. पूरा विश्व जिसकी प्रतिभा का लोहा मानता है उसके अपने देश ने ही उन्हें उचित सम्मान नहीं दिया.

वशिष्ठ बाबू की शान में किए जा रहे वादे
वशिष्ठ नारायण सिंह के निधन के बाद अब जाकर उनके सम्मान में भारत रत्न और यूनिवर्सिटी की मांग उठ रही है. देखना होगा जिन हुक्मरानों ने जीते जी वशिष्ठ नारायण सिंह को भुला दिया, वे उनके जाने के बाद उनकी शान में किए गए वादें कब तक पूरे करते हैं.

Last Updated : Dec 30, 2019, 10:14 AM IST

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