गया: तीर-धनुष मनुष्य के परंपरागत शस्त्र माने जाते हैं. आदिमानव काल से ही इस शस्त्र का जिक्र होता रहा है. अब इस शस्त्र का प्रयोग तीरंदाजी खेल में किया जाता है. गया के खिलाड़ी भी इस खेल में अपना नाम रोशन कर रहे हैं. वहीं, जिला प्रशासन और बिहार सरकार की ओर से अब तक इस खेल को प्रोत्साहित नहीं किया गया. इस वजह से खिलाड़ियों का भविष्य अंधकार के सागर में डूबता दिख रहा है.
गया के माडनपुर इलाके में एक निजी मैदान में दर्जनों खिलाड़ी सुबह और शाम तीरंदाजी खेल का अभ्यास करते हैं. इन खिलाड़ियों ने अपने बल पर ही जिला स्तरीय, राज्य स्तरीय और राष्ट्रीय स्तरीय खेल खेला है. इसके बावजूद जिला प्रशासन और बिहार सरकार ने आजतक इन्हें प्रोत्साहित नहीं किया. तिरंदाजी खेल के लिए न तो कोई जिला स्तरीय एकेडमी है, न ही अभ्यास के लिए इनका खुद का कोई मैदान है.
ईटीवी भारत को बताई समस्या
गया और बिहार का नाम रोशन करने वाले खिलाड़ियों ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की. खिलाड़ी वेदनाथ मेहरवाल ने बताया कि वह राज्य स्तरीय गेम खेल चुके हैं. खिलाड़ियों ने बताया कि वह एक दिन मैदान के बगल से गुजर रहे थे. उसी बीच उन्होंने कुछ लोगों को तीरंदाजी का अभ्यास करते देखा. खिलाड़ियों को देखकर उन्हें भी यह खेल सीखने की इच्छा हुई, जिसके बाद उन्होंने तीरंदाजी करना शुरू कर दी. उन्होंने सरकार से इस खेल के लिए एक ग्राउंड और संसाधन के लिए एक रूम बनाने की मांग की है.
सरकार से नहीं मिली मदद
खिलाड़ी आकांक्षा ने बताया कि वह स्कूल से ही तीरंदाजी खेलती आ रही है. उन्होंने बताया कि वे लोग खुद के बल पर कई गेम खेलने गए. जिला और राज्य से उन्हें अबतक कोई मदद नहीं मिली. वे निजी मैदान में इस खेल का अभ्यास करते हैं. जहां कई लोग आकर परेशान करते हैं. उन्होंने इस तीरंदाजी के लिए एक ग्राउंड बनाने का अनुरोध किया.
सरकार से एकेडमी बनाने की गुहार
कोच जय प्रकाश ने बताया कि प्रतिदिन 30-35 खिलाड़ी मैदान में अभ्यास करने आते हैं. उनमें 6 लड़कियां भी है. यहां सभी को निशुल्क ट्रेनिंग दी जाती है. इनमें से 8 खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर पर खेल चुके हैं. उन्होंने सरकार से गुहार लगाते हुए कहा कि यदि सरकार एक एकेडमी और एक प्ले ग्राउंड बना दे, तो यहां के खिलाड़ी विदेशों में भी गया और बिहार का नाम रोशन करेंगे.