गयाः कालचक्र का अर्थ समय का चक्र है. जो तिब्बती बौद्ध धर्म का महत्वपूर्ण हिस्सा है. इसे तंत्र का महाअनुष्ठान भी कहा जाता है. इसे पूरा करने का अधिकार मात्र दलाईलामा को होता है. इसमें दलाईलामा का सहयेाग दक्ष लामाओं द्वारा किया जाता है. इसमें तिब्बत, भूटान, नेपाल, जापान, म्यांमार, स्पेन, रूस, लाओस, श्रीलंका के अलावा कई देशों के बौद्ध श्रद्धालु और पर्यटक भाग लेते हैं.
आस्था से करते हैं कालचक्र पूजा
कालचक्र पूजा के बारे में बोधगया के बौद्ध भंते बताते हैं कि भूटान और तिब्बत के बौद्ध धर्मावलंबी काफी आस्था से कालचक्र पूजा करते हैं. इसमें प्रथम मंडला निर्माण के लिए धर्मगुरू द्वारा भूमि पूजन किया जाता है. उसके बाद तांत्रिक विधि विधान से मंडाला का निर्माण धर्मगुरू की देखरेख में बौद्ध लामाओं द्वारा किया जाता है. इसके लिए भूमि का चयन उत्तर-पूर्व दिशा में होता है. चयनित भूमि पर एक गड्डा खोदा जाता है और फिर इसी गड्ढे से निकली मिट्टी से उसे भरा जाता है. माना जाता है कि यदि मिट्टी गड्ढे से अधिक हो तो शुभ होता है. जबकि अगर कम पड़ जाए तो अशुभ होता है. पूजा के दूसरे दिन मंडल स्थल को बुरी आत्माओं से दूर रखने के लिए लामाओं द्वारा पारंपरिक वेशभूषा में नृत्य किया जाता है. फिर मंडाला के लिए पवित्र रेखा खींची जाती है. मंडाला निर्माण में तीन दिन का समय लग जाता है.
क्या है कालचक्र पूजा
शांति के लिए तांत्रिक क्रियाओं से की जानेवाली ये बौद्ध धर्म की पूजा है. इस पूजा में विशेष लोग भाग लेते हैं. पूजा विधि के क्रम जो सूत्र बोला जाता है, उसे पेटिंग के माध्यम से दर्शाया जाता है. एक पूरा चक्र बनाया जाता है. चक्र में बोले गए अर्थ को पेटिंग से एक अवधि तक दर्शाया जाता है. कालचक्र पूजा में समय का आंकलन भी किया जाता है.
कालचक्र की नीव जीव के चार मूल्य सत्यों पर रखी जाती है. बौद्ध धर्म का प्रचार करने वाले अगर कालचक्र के दौरान दीक्षा लेते हैं तो उसका अर्थ होता है कि साधक अब कालचक्र तंत्र की कोशिश कर सकता है. कालचक्र तंत्र की मुख्य देवी पुरूष व स्त्री तंत्र का ही मिलाप दर्शाती है. कालचक्र पूजा के अंतिम दिन धर्मगुरू के दीर्घायु की कामना की जाती है.