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बिहार महासमर 2020: इमामगंज में दो धुरंधरों के बीच होगी कांटे की टक्कर, क्या बदलेगा समीकरण?

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Published : Sep 23, 2020, 7:44 PM IST

आगामी चुनाव में इमामगंज विधानसभा सीट पर दो धुरंधर चेहरों के बीच कांटे की टक्कर होगी. इस बार रामस्वरूप पासवान चुनावी मैदान में आ सकते हैं. वहीं, आरजेडी की टिकट से उदयनारायण चौधरी किस्मत आजमा सकते हैं.

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गया (इमामगंज): 'नक्सलियों के लाल इलाके' के रूप में चर्चित इमामगंज विधानसभा सीट 1957 में गठित की गयी थी. यहां के रानीगंज के जमींदार अंबिका प्रसाद सिंह ने निर्दलीय चुनाव लड़ते हुए कांग्रेस की महिला नेत्री चंंद्रावती देवी को हराकर इस सीट पर कब्जा किया था. दूसरी बार चुनाव में भी अंबिका प्रसाद सिंह ने स्वतंत्र पार्टी के उम्मीदवार के रूप में कांग्रेस के जगलाल महतों को हराया था. 1967 में यह सीट अऩुसुचित जाति के लिए आरक्षित की गई थी. इसके बाद से यहां से लगातार अनुसुचित जाति से जुड़े नेता इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहें हैं.

बिहार-झारखंड एक साथ रहने की स्थिति में यह चतरा लोकसभा क्षेत्र के अन्तर्गत आता था. जबकि झारखंड के अलग राज्य बन जाने के बाद यह विधानसभा क्षेत्र अभी औरंगाबाद संसदीय क्षेत्र में चला गया है. इमामगंज विधानसभा क्षेत्र के कई ऐसे भी गांव हैं जहां अभी भी आधारभूत सुविधाओं का घोर अभाव है. पहाड़ी और जंगली इलाका होने की वजह से यह दशकों तक नक्सलियों की शरणस्थली बनी रही और यहां के लोग सैकड़ों नक्सली घटना का गवाह दर्ज हैं. नक्सली संगठन और पुलिस के बीच होने वाली मुठभेड़ की वजह से स्थानीय लोगों को कई तरह का नुकशान झेलना पड़ा है और अभी भी पड़ता है. लेकिन अर्धसैनिक बलों के अभियान के शुरू होने के बाद इलाके में नक्सलियों का प्रभाव कमजोर हुआ है. हालांकि अभी भी उस कई इलाकों में नक्सली गतिविधि सक्रिय हैं.

पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी कर रहे हैं प्रतिनिधित्व
अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित इमामगंज विधानसभा में लगभग 70 हजार वोटर हैं. इस विधानसभा क्षेत्र में पहला नम्बर महादलितों का खास कर भुईया (मांझी) जाति की आबादी है. दूसरे नम्बर पर कोयरी का वोट है. इस क्षेत्र में 144 ऐसे गांव व टोले हैं, जहां कोयरी जाति के लोगों रहते है. यहां स्थानीय राजनैतिक में कोयरी जाति का अहम भूमिका होती है. यहां यादव और मुसलमानों का आबादी है. दोनों की आबादी के मामले में तीसरे नम्बर पर हैं. दोनों की आबादी में समानता है. वहीं बात करें तो वैश्य समाज और पचपुनियां समाज में भी समानता है. उच्च जाति के सतदाताओं में राजपूतों का वर्चस्व है.

ये लोग कर चुके हैं प्रतिनिधित्व
गठन होने के बाद 1957 और 1962 में लगातार अंबिका प्रसाद सिंह ने इस विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया था. उसके बाद 1967 में काग्रेस के डी.राम 1967 में जनता पार्टी से ईश्वरदास, 1972 में काग्रेस के अवधेश राम, 1977 में जनता पार्टी से ईश्वर दास, 1980 और 1985 में कांग्रेस के श्रीचंद सिंह, 1990 में जनता दल के उदयनारायण चौधरी, 1995 में समता पार्टी के रामस्वरूप पासवान, 2005 और 2010 में जदयू से उदयनारायण चौधरी और 2015 में हम पार्टी के जीतनराम मांझी ने इस सीट पर जीत हासिल कर क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया.

पूर्व सीएम और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष के बीच मुकाबले की संभावना
2015 के विधानसभा चुनाव से इस बार के चुनाव का राजनीतिक समीकरण बदला. पूर्व विस अध्यक्ष उदयनारायण चौधरी 1990 के बाद 2000, 2005 के फरवरी और 2005 के नवंबर के साथ ही 2010 में लगातार चार चुनाव में जीत दर्ज की थी और 2015 में उनके खिलाफ क्षेत्र में एंटी इनकमबेंसी फैक्टर काम कर रहा था. इस वजह से हम पार्टी के जीतनराम मांझी ने एनडीए गठबंधन से हम पार्टी के चुनाव चिन्ह पर करीब 30 हजार वोट से जदयू के उदयनारायण चौधरी को हराया था. वहीं उसी चुनाव में जीतनराम मांझी अपनी मकदूमपुर की सीट राजद के एक साधारण कार्यकर्ता सूबेदार दास से हार गये. 2015 के चुनाव में जीतनराम मांझी को इमामगंज सीट से 79389 और उदयनरायण चौधरी को 49981 वोटर मिला था. पूर्व विस अध्यक्ष उदयनारायण चौधरी इस बार राजद के टिकट से चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं. वहीं पूर्व विधायक रामस्वरूप पासवान भी राजद के टिकट से चुनाव मैदान में उतरने बात कर रहे हैं.

क्षेत्र में सक्रिय दिख रहे नेता
आगामी चुनाव को लेकर उदयनारायण चौधरी और रामस्वरूप पासवान इमामगंज क्षेत्र का लगातार दौरा कर जनसपंर्क अभियान चला रहे हैं. वहीं पूर्व मुख्यमंत्री सह वर्तमान विधायक जीतनराम मांझी ने शुरू में अपनी 77 साल की उम्र का हवाल देकर चुनाव नहीं लड़ने की इच्छा जाहिर की थी. लेकिन, चुनाव से ठीक पहले महागठबंधन को छोड़कर जदयू के रास्ते एनडीए में आ जाने के बाद तस्वीर बदलती हुई दिख रही है. सूत्रों की मानें तो बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने खुद ही जीतनराम मांझी को उदयनारायण चौधरी के खिलाफ इमामगंज से चुनाव लड़ने की सलाह दी है. जिसके बाद वे क्षेत्र ज्यादा सक्रिय हो गए है.

तेज हुई अटकलें
वहीं सूत्रों की मानें तो यह भी बात निकलकर आ रही है कि उदयनारायण चौधरी एक फिर से एक बार जदयू में जा रहे है. इसको लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से गुपचुप तरीके से बात हो रही है. वह 30 सितंबर तक जदयू के दामान एकबार फिर से थाम सकते हैं. ऐसे में अब देखने वाली बात होगी कि उदयनारायण चौधरी और रामस्वरूप पासवान के बीच 2020 विधानसभा चुनाव में टकराव रहेगा या फिर उदयनारायण चौधरी और जीतनराम मांझी के एक बार फिर से मैदान में आने से यह इमामगंज सुरक्षित विधानसभा सीट पर पूरे बिहार की नजर बनी रहेगी.

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