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गया: अधर में लटकी AIIMS की तर्ज पर बनने वाले अस्पताल की योजना, सरकार नहीं दे सकी जमीन

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Published : Jul 8, 2020, 7:04 PM IST

बीटीएमसी और बोधगया फाउंडेशन दोनों के प्रस्तावित अस्पताल बनाने की परियोजना में 155 करोड़ रुपये खर्च करने का प्रस्ताव था. इसमे 700 बेड की व्यवस्था का प्रावधान था. इसकी पूरी व्यवस्था चेरिटेबल ट्रस्ट के तहत संचालित की जानी थी. दोनों प्रस्तावित अस्पताल इसलिए नहीं बन सके, क्योंकि सरकार जमीन उपलब्ध नहीं करा सकी.

bodh-gaya
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गया:बोधगया की पहचान पूरे विश्व में ज्ञान की धरती के रुप में होती है. गया एक प्रमुख धार्मिक पर्यटन स्थल है,जहां देश-विदेश से लोग पहुंचते हैं. इन लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मिले इसके लिए बीटीएमसी ने 2011 में एम्स की तर्ज पर सुपर स्पेशलिटी अस्पताल बनाने का प्रस्ताव पारित किया था, लेकिन जमीन के अभाव में अस्पताल का काम आज तक फाइलों में दबा है.

बोधगया नगर पंचायत कार्यालय

नगर पंचायत दे रही मदद का भरोसा
सुपर स्पेशलिटी अस्पताल की जरूरत नगर पंचायत भी समझती है. बीटीएमसी के प्रस्ताव पर 2016 में नगर पंचायत ने 12 सौ करोड़ की लागत से बनने वाले अस्पताल का प्रस्ताव पारित किया था, लेकिन इसके बाद कोई पहल नहीं की गई. हालांकि नगर पंचायत की ओर से जरूरी मदद का भरोसा आज भी दिया जा रहा है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

आरजेडी विधायक की दलील
वहीं आरजेडी विधायक कुमार सर्वजीत ने कहा कि ये सरकार मंदिर बनाने में लगी है. अंतरराष्ट्रीय महत्व का स्थल होने के बावजूद यहां एक अस्पताल तक नहीं है. सरकार बस जमीन उपलब्ध करवाए, अस्पताल हम बना लेंगे.

महाबोधि मंदिर कार्यालय

जमीन को लेकर प्रस्ताव पेंडिंग
वहीं बीटीएमसी के सदस्य अरविंद कुमार ने बताया कि बीटीएमसी ने जनकल्याण को देखते हुए कई एकड़ में अंतराष्ट्रीय स्तर का अस्पताल बनाना चाहा था उस वक्त सभी लोग सक्रिय थे, सभी ने सहमति जताई थी. लेकिन जमीन को लेकर प्रस्ताव पेंडिंग हो गया. अगर सरकार जमीन उपलब्ध करवा देती है तो बीटीएमसी अस्पताल बनवा देगी.

एन दोरजी ,सचिव, बीटीएमसी

चेरिटेबल ट्रस्ट के जरिए होता संचालित
बोधगया में बीटीएमसी ने एक अस्पताल बनाने का प्रस्ताव भेजा था. उसके अलावा बोधगया फाउंडेशन ने मगध विश्विद्यालय परिसर में 25 एकड़ में हॉस्पिटल और मेडिकल कॉलेज के निर्माण का प्रस्ताव 2016 में दिया था. इस परियोजना में 155 करोड़ रुपये खर्च करने का प्रस्ताव था. इसमे 700 बेड की व्यवस्था का प्रावधान था. इसकी पूरी व्यवस्था चेरिटेबल ट्रस्ट के तहत संचालित की जानी थी. लेकिन ये दोनों प्रस्तावित अस्पताल इसलिए नहीं बन सके क्योंकि सरकार जमीन उपलब्ध नहीं करा सकी.

मगध विश्विद्यालय

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