गया:आध्यात्मिक धर्मगुरु दलाई लामा (Dalai Lama) का प्रवचन सुनने के लिए फ्रांसीसी महिला जेनी पेरे (French Woman Jenny Pere) 2001 मेंज्ञान की धरती बोधगया (Bodhgaya) आईं थीं. लेकिन कुछ ऐसा हुआ कि फिर कभी जेनी वापस अपने देश नहीं लौटी. अब 80 साल की जेनी को सभी मम्मी जी (Mummy jee) के नाम से पुकारते हैं.
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जेनी पेरे जब बोधगया टेंपल से लेकर होटल के रास्तों के बीच से गुजर रही थी तो उनकी नजर गरीब बच्चों पर पड़ी. गरीब बच्चों का दर्द देखकर जेनी पेरे का मन व्याकुल हो उठा और उन्होंने फैसला लिया कि इन बच्चों की मदद करेंगी. उसके बाद जेनी ने फ्रांस का अपना घर बार छोड़ दिया और बोधगया में ही रहने लगीं. जेनी पेरे इन गरीब बच्चों को आवासीय शिक्षा देने में लगी हैं. यही नहीं अनाथ बच्चों को मां जैसा प्यार जेनी से मिलने लगा तो बच्चों ने जेनी पेरे का नाम 'मम्मी जी' रख दिया. आज जेनी पेरे 'मम्मी जी' के नाम से विख्यात हैं.
गरीब बच्चों के लिए निशुल्क स्कूल, अनाथ बच्चों के लिए आवासीय स्कूल, वहीं छात्राओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए विभिन्न तरह की निशुल्क व्यवसायिक प्रशिक्षण का काम जेनी कर रही हैं. फ्रांसीसी महिला जेनी पेरे बताती हैं कि साल 2001 में बोधगया आयी थी. तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा का टीचिंग चल रहा था.
महाबोधी मंदिर से लेकर होटल जाने के रास्ते के बीच मैंने कई बच्चों को भीख मांगते, इधर उधर भटकते देखा. इन बच्चों की किसी को चिंता नहीं थी. मैंने सोचा कि इन बच्चों का उत्थान किया जाए. तब ही भगवान बुद्ध के विचार सार्थक होंगे. मैने ठान लिया कि इन बच्चों को काबिल बनाऊंगी. मैंने शुरूआत में बोधगया के लोगों के साथ मिलकर बच्चों को पढ़ाना शुरू किया. शुरुआत में बच्चे कम आये लेकिन जैसे जैसे बच्चों का शैक्षणिक विकास होने लगा वैसे वैसे बच्चों की संख्या में इजाफा हुआ.- जेनी पेरे उर्फ मम्मी जी,समाजसेविका
जेनी पेरे ने मम्मी जी एजुकेशनल चेरिटेबल ट्रस्ट की शुरूआत की. साथ ही अनाथ बच्चों के लिए आवासीय विद्यालय भी बनवाया. जहां बच्चों के रहने खाने की व्यवस्था की गई. बच्चों को सिर्फ अपनी पढ़ाई पर ध्यान देने की जरूरत थी. बाकी सारी चिंताओं का समाधान जेनी पेरे उर्फ मम्मी जी ने कर दिया था.
जेनी पेरे ने कहा 'मुझे भारत में क्या मिलेगा यह सोचकर नहीं आई थी. लेकिन भारत में मुझे बहुत सम्मान मिला. जब हर वर्ग, हर उम्र के लोग मुझे मम्मी जी कहकर पुकारते हैं तो यह सम्मान किसी भारत रत्न से कम नहीं होता है. हर कोई मुझमे मां देखता है और मैं अपने बच्चों की तरह उनकी सेवा करती हूं.'