गया: जिले के बाराचट्टी प्रखंड के बीहड़ जंगलों में एक दंपति गांव के बच्चों को गुरुकुल की तर्ज पर शिक्षा दे रहे हैं. प्रखंड मुख्यालय से लगभग 50 किलोमीटर दूर दोनों दंपति बच्चों को आवासीय शिक्षा देने के एवज में शुल्क के तौर पर महज एक किलो चावल लेते हैं. सभी बच्चे को शिक्षा के साथ ही खाना बनाने से लेकर खेती करने तक का प्रशिक्षण दिया जाता है.
कोहवरी गांव में सहोदय आश्रम स्थापित
बाराचट्टी प्रखंड मुख्यालय से लगभग 10 किलोमीटर दूर स्थित काहूदाग पंचायत के कोहवरी गांव में सहोदय आश्रम स्थापित है. इस आश्रम को एक दंपति संचालित करते हैं. इस आश्रम में 25 बच्चों को आवसीय शिक्षा दी जाती है. यहां बच्चों के चहुंमुखी विकास के लिए पुराने जमाने की विधि यानी ऋषि मुनियो की दी जाने वाली शिक्षा की तर्ज पर आज के बच्चों को शिक्षित किया जाता है.
अति नक्सल प्रभावित क्षेत्र में स्थित है सहोदय आश्रम
सहोदय आश्रम जहां स्थापित है वहां हर तरफ जंगल ही जंगल है. बाराचट्टी प्रखण्ड मुख्यालय से 6 किलोमीटर का रास्ता जंगल के बीच से पगडंडियों के सहारे पार करना पड़ता है. सड़क और जंगल की समस्या के बाद यहां सबसे बड़ी समस्या है नक्सली. सहोदय आश्रम अति नक्सल प्रभावित क्षेत्र में स्थित है.सहोदय आश्रम के संचालक अनिल कुमार हैं. इसके संचालन में उनकी पत्नी उनका साथ देती हैं. अनिल कुमार मुख्य रूप से पटना के बिहटा प्रखण्ड के पहाड़पुर गांव के रहने वाले हैं. अनिल और रेखा शादी के बाद दिल्ली गए. उन्होंने दिल्ली में उच्च शिक्षा हासिल की और वहीं से एमफिल किया.
बीहड़ जंगलों में शिक्षा की अलख
उनकी पत्नी रेखा ने भी पीजी तक की पढ़ाई की है. दोनों पति पत्नी को गांव से प्यार था. दिल्ली की भागदौड़ वाली जिंदगी उनको पसंद नहीं आई. इसके बाद दोनों पति-पत्नी बीहड़ जंगलों में आकर शिक्षा की अलख जगा रहे हैं.अनिल बताते हैं कि नौकरी करके और शहर में रहकर में मैं खुश नहीं था. मेरी पत्नी की भी चाहत थी हम गांव में रहे, वहीं खेती करे या बच्चों को शिक्षित करे. खेती करने के लिए जमीन चाहिए थी जो मेरे पास नहीं थी. इसके बाद बच्चों को शिक्षित करने का विचार किया.