गया : बिहार के गया में रामशिला पहाड़ की तराई में भगवान गणपति की विशाल मूर्ति स्थापित है. यह मूर्ति पूरी तरह से मूंगे की (Coral Statue of Lord Ganesha) है. यहां के पुजारियों का मानना है कि देशभर में मूंगे की भगवान गणेश की प्रतिमा कहीं नहीं है और सिर्फ गया में ही है. दाईं ओर सूंंढ और दंत के कारण भगवान गणपति यहां सिद्धिविनायक के रूप में प्रसिद्ध (Lord Ganesha in Gaya) हैं. यहां देशभर के श्रद्धालुओं की आस्था जुड़ी हुई है. देश के कोने-कोने से लोग यहां दर्शन करने को आते हैं. श्रद्धालु भगवान गणपति की मूर्ति को विघ्न विनाशक मांगते हैं. भक्तों का मानना है कि यहां भगवान गणपति हर मनोकामना को पूरी करते हैं. सच्चे मन से जो भी मांगा जाए, वह पूर्ण होती है.
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18 वीं शताब्दी से मिलता है इतिहास :पूरी तरह से मूंगे से बनी भगवान गणपति की मूर्ति काफी प्राचीन है. 18 वीं शताब्दी के आसपास से इस मूर्ति का इतिहास मिलना शुरू हो जाता है. टिकारी महाराज गोपाल शरण के समय से इस मूर्ति का जिक्र होता है. वैसे यह मूर्ति काफी प्राचीन है और यह कब की है, इसका सटीक पता नहीं चल पाता है. लेकिन 200 सालों से इसका इतिहास मिलना इस मूर्ति की प्राचीनता को दर्शाता है.
''मैं भगवान गणपति का दर्शन करने हमेशा आता हूं. लेकिन जिस तरह से इस मंदिर की प्रसिद्धि देश स्तर पर होनी चाहिए थी, वहां तक नहीं हो पाई है. जरूरत है मूंगे की एकमात्र मूर्ति वाले भगवान गणपति की प्रसिद्धि पूरे देश में हो. भगवान के दरबार में आने वाले की मुरादें निश्चित ही पूरी होती है.''- पीके अग्रवाल, भगवान गणपति के भक्त
गया में अद्वितीय हैं 4 फीट के गणेश जी :इस प्रतिमा को देश का अद्वितीय माना जाता है. दाहिनी और सूढ और दंत और कमल पर विराजमान चारभुजा वाले गणपति जी यहां विघ्नविनाशक के रूप में विराजमान हैं. गणेश चतुर्दशी के अवसर पर यहां भक्तों का तांता उमड़ता है. पुजारी दीप नारायण मिश्रा बताते हैं कि रामशिला पहाड़ की तराई में मूंगे की भगवान गणपति की विशाल प्रतिमा है, जो करीब 4 फुट के आसपास की लंबाई की है. यह देश का अद्वितीय है यहां के अलावा देश में कहीं भी मूंगे की गणपति की प्रतिमा नहीं है. हालांकि पुजारी बताते हैं कि अब सुनने में आता है कि बेतिया में छोटी सी मूंगे की गणपति की प्रतिमा है, लेकिन इसके बारे में उन्हें सटीक पता नहीं है.
''यहां भगवान गणपति सिद्धिविनायक के रूप में विराजमान हैं. चार भुजाओं वाले गणपति कमल में बैठे हैं. यहां मूंगे की मूर्ति होने के कारण गर्म से मूर्ति से पानी निकलता है, जिसे लोग भगवान का आशीर्वाद मानते हैं. इसे लेकर तरह-तरह की कहानियां भी जुड़ी हुई है. यह मंदिर काफी प्रसिद्धि प्राप्त है और यहां आने वाले हर किसी की मनोकामना पूर्ण ही हो जाती है. सच्चे मन से मांगने वाले कभी निराश होकर नहीं जाते.'' - दीप नारायण मिश्रा, पुजारी