बिहार

bihar

ETV Bharat / city

आज है मिथिलांचल का लोकपर्व कोजागरा, माता लक्ष्मी की जरूर करें आराधना

इस पर्व में मखाना और पान का विशेष महत्व माना जाता है. इस कारण पूरे वर्ष में मखाना के दाम सबसे अधिक इसी दौरान होते हैं. शहर से लेकर गांवों तक जगह-जगह मखाना की दूकानें सज चुकी हैं. लोगों में कोजागरा को लेकर उत्साह का माहौल है.

KOJAGARA
KOJAGARA

By

Published : Oct 19, 2021, 6:41 AM IST

दरभंगा: मिथिलांचल का लोक पर्व कोजागरा आज धूमधाम से मनाया जाएगा. मिथिला में इसे 'कोजगरा' कहा जाता है. मिथिला के नवविवाहित दुल्हों के घर कोजागरा (Kojagra) को लेकर उत्सवी माहौल देखा जा रहा है. घरों में दूल्हे के ससुराल से आने वाले भाड़ को लेकर चर्चा होनी शुरू हो चुकी है. रिश्तेदारों और मेहमानों के आने का सिलसिला भी जारी है. वहीं दूसरी ओर, कोजागरा को लेकर बाजार में भी चहल-पहल बढ़ गई है. शहर में जहां-तहां मखाना की दुकानों पर काफी भीड़ देखी जा रही है.

ये भी पढ़ें- बिहार उपचुनाव में मुकाबला हुआ दिलचस्प, तजुर्बेकार नेताओं से दो-दो हाथ के लिए तैयार हैं युवा चेहरे

मखाना-बताशा और पान बांटने की है परंपरा :बता दें कि कोजागरा पर्व मुख्य रूप से ब्राह्मण समाज में मनाया जाता है. मिथिला के नवविवाहित दूल्हों के घर कोजागरा को लेकर उत्सवी माहौल के साथ ही रिश्तेदार और मेहमानों के आने का सिलसिला भी शुरू हो चुका है. कोजागरा पर्व के अवसर पर दूल्हे के ससुराल से पान मखाना नारियल केला इत्यादि आता है. जिसके बाद घर के बुजुर्ग मंत्र के साथ दूर्वाक्षत देकर दूल्हे को आशीर्वाद देते है. कोजागरा के अवसर पर समाज के लोगों में मखाना-बताशा और पान बांटने की परंपरा है.

माता लक्ष्मी की होती है पूजा : दरअसल कोजागरा पर्व अश्वनी मास की पूर्णिमा यानी शरद पूर्णिमा को मनाया जाता है. इस दिन प्रदोष काल में माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है. साथ ही नवविवाहित दूल्हे का चुमावन कर नवविवाहिता के समृद्ध और सुखमय जीवन के लिए प्रार्थना की जाती है. इसके बाद लोगों के बीच मखान बतासा आदि बांटे जाते हैं. कोजागरा की रात्री जागरण का विशेष महत्व है.

खेला जाता है कौड़ी : मान्यता के अनुसार कोजागरा की रात लक्ष्मी के साथ ही आसमान से अमृत वर्षा होती है. पूरे वर्ष में शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा सबसे अधिक शीतल और प्रकाशमान प्रतीत होता है. शरद पूर्णिमा की शीतल रात में पीसे अरवा चावल के घोल से आंगन में बने अर्पण पर दूल्हे का चुमान ससुराल से आए धान और दूब से किया जाता है. इसके बाद जीजा, साला, देवर और भाभी के बीच कौड़ी का खेल खेला जाता है.

ये भी पढ़ें- बिहार विधानसभा उपचुनाव: RJD के एमवाई समीकरण में सेंधमारी, कांग्रेस ने पूरी की तैयारी

बांग्ला में इसे कोजागरी लक्खी पूजा कहा जाता है. अश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा भी कहा जाता है. शरद पूर्णिमा के दिन कोजागरी लक्ष्मी पूजा (Kojagari Laxami Puja) होती है. आपको बता दें कि दिवाली से पहले माता लक्ष्मी की पूजा करने का यह शुभ समय होता है. कुछ पौराणिक मान्याओं के मुताबिक, माता लक्ष्मी का अवतर शरद पूर्णिमा के दिन ही हुआ था. इस दिन माता लक्ष्मी देर रात में पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं.

कोजागरी पूर्णिमा के पर्व को देश के विभिन्न हिस्सों में लोग अपनी-अपनी मान्यताओं और परंपराओं के अनुसार मनाते हैं. इस तिथि पर मध्य रात्रि या निशिथ काल में पूजा करने से देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है. माना जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से पूर्ण होता है और इस रात आसमान से अमृत की वर्षा होती है. देवी लक्ष्मी कोजागरी पूर्णिमा की रात पृथ्वी पर विचरण करती हैं और अपने भक्तों को धन-संपदा और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं.

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कोजागरी पूर्णिमा या शरद पूर्णिमा की रात्रि में माता लक्ष्मी जब धरती पर विचरण करती हैं तो 'को जाग्रति' शब्द का उच्चारण करती हैं. इसका अर्थ होता है कौन जाग रहा है. वो देखती हैं कि रात्रि में पृथ्वी पर कौन जाग रहा है. जो लोग माता लक्ष्मी की पूरी श्रद्धा से पूजा करते हैं, उनके घर मां लक्ष्मी जरुर जाती हैं.

ABOUT THE AUTHOR

...view details