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बिहार के किसानों का दर्द: पहले डीएपी के लिए दर-दर भटके.. अब यूरिया की आस में रुक रही गेहूं की पटवन

रबी सीजन में केंद्र की ओर से कोटे से 26 प्रतिशत कम यूरिया बिहार ( urea crisis in bihar ) को मिला है. यही कारण है कि दरभंगा, मुजफ्फरपुर और मोतिहारी समेत उत्तर बिहार के कई जिलों में यूरिया की आपूर्ति जरूरत की महज 47 प्रतिशत हो सकी है. पढ़ें पूरी खबर...

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Published : Jan 12, 2022, 2:02 PM IST

दरभंगा: पहले भीषण बाढ़ ने उत्तर बिहार के किसानों की खरीफ की फसल पूरी तरह डुबो दी. उसके बाद रबी फसल की बुआई में किसानों ने डीएपी खाद का संकट ( DAP fertilizer crisis ) झेला. अब किसान गेहूं की पटवन में भी ऐसी ही परेशानी झेल रहे हैं. अब यूरिया के संकट की वजह से किसानों की पहली और दूसरी पटवन रुक रही है. किसान यूरिया के लिए मारे-मारे फिर रहे हैं. इसकी वजह से फसल खराब होने का खतरा मंडरा रहा है.

बिहार सरकार से मिले आंकड़ों के अनुसार, रबी सीजन में केंद्र की ओर से राज्य के कोटे से 26 प्रतिशत कम यूरिया बिहार को मिला है. इसकी वजह से दरभंगा, मुजफ्फरपुर और मोतिहारी समेत उत्तर बिहार के कई जिलों में यूरिया की आपूर्ति जरूरत की महज 47 प्रतिशत हो सकी है. इस वजह से उत्तर बिहार के कई जिलों में या तो किसान ब्लैक मार्केट से महंगे दाम पर यूरिया खरीद कर पटवन कर रहे हैं या फिर यूरिया के अभाव में पटवन रुक रही है.

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किसान नथुनी पासवान ने कहा कि बाढ़ की वजह से पहले तो धान की फसल पूरी तरह बर्बाद हो गई. उसके बाद जब गेहूं की बुआई का समय आया तो पानी की वजह से वह भी लेट हो गया. बुआई के समय डीएपी खाद की मारामारी हो रही थी, जिसकी वजह से और भी देरी हुई. उन्होंने कहा कि अब जब पहली या दूसरी पटवन का समय है तो यूरिया के लिए भी मारामारी हो रही है. उन्होंने कहा कि बाजार में यूरिया काफी महंगे दर पर मिल रहा है. इसकी वजह से सही समय पर पटवन नहीं हो पा रही है.

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किसान कैलाश सहनी ने कहा कि कई बार यूरिया के लिए दौड़ना पड़ता है. इसके बाद भी सरकारी दुकान पर यूरिया खाद नहीं मिलता है. उन्होंने कहा कि बार-बार आधार कार्ड लेकर जाते हैं, लेकिन खाली हाथ वापस लौटना पड़ता है. उन्होंने कहा कि किसानों के साथ कोई भी नहीं है. कहां शिकायत करें समझ में नहीं आता है. किसान कन्हैया ठाकुर ने बताया कि गेहूं की बुआई के समय डीएपी की बाट जोहते-जोहते उन्होंने अपने खेत में सरसों और मसूर की खेती की. अब जब पटवन का समय आया है तो यूरिया नहीं मिल रहा है.

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उन्होंने कहा कि गेहूं की पहली पटवन 21-22 दिन के भीतर करनी जरूरी होती है. लेकिन यूरिया नहीं मिलने की वजह से पटवन या तो रुक रही है या काफी देर से हो रही है. इसका सीधा असर उपज पर पड़ेगा. उन्होंने कहा कि ब्लैक मार्केट से जो यूरिया खरीद कर लाते हैं. वह असली है या नकली, इसकी गारंटी नहीं होती. वहीं, एक अन्य किसान जगदीश सहनी ने कहा कि खाद की दुकानों पर कई-कई दिन दौड़ना पड़ता है, इसके बावजूद खाद नहीं मिलती है. उन्होंने कहा कि दुकानों पर सुबह से लेकर शाम तक लंबी लाइन में लगना पड़ता है. इसके बावजूद अधिकतर लोगों को खाली हाथ लौटना पड़ता है.

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