छपरा/सारण: बिहार के मशहूर लौंडा नाच के प्रसिद्ध कलाकार रामचंद्र मांझी (Ramchandra Manjhi) को पद्मश्री पुरस्कार (Padma Shri award) सम्मानित किया जा रहा है. पद्म पुरस्कारों का वितरण मंगलवार को राष्ट्रपति भवन में होगा. इसके लिए उन्हें दिल्ली बुलाया गया है. वे प्रतिष्ठित पुरस्कार पद्मश्री प्राप्त करने के लिए दिल्ली पहुंच गये हैं. इस पुरस्कार की घोषणा से बिहार में कला जगत में खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में हाशिए पर खड़े लोक कलाकारों के लिए नयी उम्मीदें जग गई हैं. ऐसी ही एक उम्मीद जगी है लुप्त होती जा रही लोक कला लौंडा नाच को लेकर.
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प्रसिद्ध लोक कलाकार रामचंद्र मांझी सारण जिले के नगरा प्रखण्ड अन्तर्गत तुजारपुर गांव के रहने वाले हैं. रामचंद्र मांझी को संगीत नाटक अकादमी अवार्ड 2017 से भी नवाजा जा चुका है. रामचंद्र मांझी 94 वर्ष के होने के बावजूद आज भी मंच पर जमकर युवाओं की तरह थिरकते और अभिनय करते हैं. रामचंद्र मांझी बताते हैं कि उन्होंने 10 साल की उम्र में ही भोजपुरी के शेक्सपियर कहे जाने वाले लोककवि सह मेरे आदर्श और सबकुछ गुरु भिखारी ठाकुर के साथ स्टेज पर पांव रख दिया था.
इसके बाद 1971 तक भिखारी ठाकुर की छाया तले बिहार ही नहीं बल्कि बिहार से बाहर व विदेशों में भी अपनी कला का प्रदर्शन करते रहे. भोजपुरी के शेक्सपीयर लोक कलाकार के निधन के बाद रामचंद्र मांझी ने गौरीशंकर ठाकुर, शत्रुघ्न ठाकुर, दिनकर ठाकुर, रामदास राही और प्रभुनाथ ठाकुर के नेतृत्व में काम किया. आज भी प्रोफेसर डॉ. जैनेन्द्र दोस्त के निर्देशन में संचालित भिखारी ठाकुर रंगमण्डल प्रशिक्षण एवं शोध केंद्र के बैनर तले अपनी कला का प्रदर्शन करते नहीं थकते है.
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जीवन के इस पड़ाव पर पद्मश्री मिलने के बाद रामचंद्र को उम्मीद है कि अब लौंडा नाच की कला में फिर से नई जान आएगी और नए कलाकारों को भी सम्मान के नजरो से देखा जायेगा. लौंडा नाच बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों की प्रसिद्ध प्राचीन लोक नृत्यों में से एक है. इसमें लड़का, लड़की की तरह मेकअप करके और एक महिला की वेशभूषा में नृत्य करता है. किसी भी धार्मिक, मांगलिक, शादी विवाह, जन्मोत्सव पर लोग अपने यहां ऐसे आयोजन कराते हैं. हालांकि, आज समाज में लौंडा नाच हाशिए पर है.
अब महज कुछ ही ऐसी मंडलियां बची हैं जो इस कला को जीवंत रखे हुए हैं. आज उनकी हालत भी कुछ खास अच्छी नहीं है. बिहार में आज भी लोग लौंडा नाच को बहुत ज्यादा पसंद किया जाता है. रामचंद्र मांझी मानते हैं कि उन्हें इतनी पहचान और सम्मान इसी कला की बदौलत मिल रही हैं. रामचंद्र मांझी जिस कला के लिए जाने जाते हैं, एक वक्त बिहार में उसका डंका बजता था. बदलते वक्त के साथ डीजे और ऑर्केस्ट्रा ने भले ही अपनी अलग जगह बना ली हो, लेकिन आज भी इस कला के लाखों कद्रदान हैं.
उन्हें पद्मश्री अवार्ड मिलने की जानकारी होने पर लोककलाकारों, सारण वासियों सहित उनके परिजनों में बेहद खुशी है. रामचंद्र खुद भी खुशी जाहिर करते हुए कहते हैं कि उनके जैसे कलाकार को सरकार ने बड़ा सम्मान दिया है. इसी वर्ष फरवरी में कला संस्कृति एवं युवा विभाग बिहार सरकार द्वारा रामचंद्र मांझी को कला जगत में उम्रदराज होने के बावजूद उत्कृष्ट प्रदर्शन करने के लिए लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. यही नहीं, रामचंद्र मांझी को कई अन्य पुरस्कार भी मिले हैं.
केंद्रीय संगीत नाटक अकादमी की तरफ से रामचंद्र मांझी को लोक रंगमंच पुरस्कार के लिए भी चुना जा चुका है. यह एकेडमी पुरस्कार 1954 से हर साल रंगमंच, नृत्य, लोक संगीत, ट्राइबल म्यूजिक समेत कई अन्य क्षेत्रों और विधाओं के लिए दिया जाता है. इसके लिए हर साल देश भर से कलाकारों का चयन किया जाता है.
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