करनाल: हिंदू पंचांग के अनुसार इस बार ज्येष्ठ महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी का व्रत रखा जाएगा. शास्त्रों में बताया गया है कि इस दिन विधिवत रूप से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा अर्चना की जाती है. जिसे उनका आशीर्वाद जातक के परिवार पर बना रहता है और घर में सुख समृद्धि आती है. निर्जला एकादशी के दिन लोगों को जल पिलाने का भी विशेष महत्व बताया गया है. जिसे पुण्य की प्राप्ति होती है. आइए जानते हैं कि कब है निर्जला एकादशी और व्रत का विधि विधान क्या है.
कब है निर्जला एकादशी? पंडित विश्वनाथ ने बताया कि इस बार लोगों में असमंजस की स्थिति है कि निर्जला एकादशी का व्रत किस दिन रखा जाएगा. इस बार निर्जला एकादशी का व्रत 18 जून के दिन रखा जाएगा और इसका पारण अगले दिन 19 जून को किया जाएगा. हिंदू पंचांग के अनुसार निर्जला एकादशी 18 जून को सुबह 4:45 से शुरू हो रही है जबकि इसका समापन 19 जून को सुबह 6:24 पर होगा.
निर्जला एकादशी के दिन बन रहे शुभ योग: पंडित ने जानकारी देते हुए बताया कि इस बार निर्जला एकादशी के व्रत के दिन कई शुभ योग बनते हुए दिखाई दे रहे हैं. जो एकादशी के व्रत करने वाले जातकों के लिए काफी अच्छे माने जा रहे हैं. एकादशी के दिन 18 जून को पुष्कर योग बन रहा है. जो दोपहर 3:56 से शुरू होकर 19 जून को सुबह 5:24 तक रहेगा. शिवयोग 18 तारीख को सुबह से लेकर रात के 9:39 तक रहेगा, जबकि स्वाति नक्षत्र योग सुबह से लेकर दोपहर 3:56 तक रहेगा.
निर्जला एकादशी का महत्व और पूजा का विधि विधान: पंडित विश्वनाथ ने बताया कि निर्जला एकादशी का व्रत सबसे ज्यादा कठिन व्रत होता है. क्योंकि इस व्रत को निर्जला व्रत के रूप में रखा जाता है. जिसमें व्रत रखने वाला जातक जल तक ग्रहण नहीं करता. निर्जला एकादशी के दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करके भगवान सूर्य देव को जल अर्पित करें, उसके बाद भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के आगे देसी घी का दीपक जलाकर पूजा अर्चना करें, उनको पीले रंग के फल, फूल, मिठाई, वस्त्र, अक्षत और चंदन पूजा के दौरान अर्पित करें, उसके बाद व्रत रखने का प्रण लें, निर्जला एकादशी के दिन निर्जला व्रत रखा जाता है. इस दिन जातक व्रत के दौरान जल की एक बूंद तक ग्रहण नहीं करता.