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आदिवासियों की पिच पर फिर क्यों लौटी कांग्रेस, मध्य प्रदेश में पार्टी का नया प्लान - MP CONGRESS PLAN

एमपी में आदिवासी कांग्रेस का सबसे अच्छा वोट बैंक माना जाता है. लिहाजा कांग्रेस जमीन पर उतरकर आदिवासियों को साधने की कोशिश में जुटी है.

MP CONGRESS PLAN
मध्य प्रदेश में पार्टी का नया प्लान (ETV Bharat)

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Feb 27, 2025, 5:11 PM IST

भोपाल:मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव में अभी चार साल बाकी है, लेकिन कांग्रेस ने अपने कोर वोटर की संभाल अभी से शुरू कर दी है. इस मामले में बीजेपी से दो कदम आगे चलते हुए पार्टी ने कांग्रेस का हाथ आदिवासी के साथ का नारा बुलंद कर दिया है. शुरूआत आदिवासियों के बीच नई लीडरशिप तैयार करने के साथ हो चुकी है. धार के मोहनखेड़ा में लीडरशिप डेवलपमेंट शिविर इसका पहला कदम था, लेकिन अब अगले चार साल पार्टी आदिवासियों के बीच नए कार्यक्रमों के साथ अपने पैर मजबूत करती रहेगी.

क्या वजह है कि पार्टी ने चुनाव के चार साल पहले से आदिवासी सिर्फ हमारे हैं का राग छेड़ दिया है. क्या ये उस भरोसे का दांव है, जिसमें 2023 के विधानसभा चुनाव में मध्य प्रदेश में कांग्रेस की डूबती नाव को सम्मानजनक सहारा आदिवासियों की बदौलत मिल पाया था. मध्य प्रदेश की 47 आदिवासी सीटों में 22 सीटें कांग्रेस के खाते में गई थी.

जीतू पटवारी का बयान (ETV Bharat)

आदिवासी समाज में ही क्यों लीडरशिप की तलाश

बीते दिनों कांग्रेस ने 89 विकासखंडों के साथ आदिवासी सीटों से इस वर्ग के नौजवानों को बुलाकर उनके बीच नई लीडरशिप तैयार करने का प्रोग्राम बनाया. ये पार्टी का अपने कोर वोटर के साथ एक बड़ा इमोशनल दांव था. वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक प्रकाश भटनागर कहते हैं, "कांग्रेस आदिवासियों को ये बताना चाहती है कि अब भी उसकी बड़ी चिंता अपने कोर वोटर को लेकर ही है. पार्टी लीडरशिप में इस वर्ग की नुमाइंदगी चाहती है. यही वजह है कि कांग्रेस ने इसी वर्ग के बीच लीडरशिप डेवलपमेंट प्रोग्राम चलाया.

आदिवासियों की पिच पर फिर क्यों लौटी कांग्रेस (ETV Bharat)

आदिवासी वर्ग भी यही चाहता है कि जब उसे मुख्य धारा में आने का मौका मिलेगा. तब ही तो वो अपने समाज के हक में फैसला ले सकेगा. कांग्रेस अघोषित तौर पर ये संदेश देना चाहती है कि कांग्रेस अकेली पार्टी है, जो आदिवासियों के बीच जाकर उन्हें ट्रेनिंग देकर उनके बीच से ही लीडरशिप तैयार कर रही है."

कांग्रेस का प्लान जो अपने हैं, वहां पकड़ और मजबूत हो

2023 के विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने कांग्रेस के कोर वोटर आदिवासी समाज में सेंध लगाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. आदिवासी नायकों को इतिहास के पन्नों से निकालने से लेकर 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस घोषित किए जाने तक आदिवासी वर्ग को साधना बीजेपी का हर दांव था, लेकिन 2023 के विधानसभा चुनाव में जिस तरह आदिवासी ने कांग्रेस के हक में सम्मानजनक जनादेश दिया. अपनी परंपरागत पार्टी से किनारा नहीं किया. उसने कांग्रेस को आत्मविश्वास से भर दिया.

आदिवासियों को साधने में जुटी कांग्रेस (ETV Bharat)

कांग्रेस की प्रवक्ता संगीता शर्माकहती हैं, "बीजेपी सत्ता में थी और कई योजनाएं और एलान आदिवासियों के लिए किए गए, लेकिन आप देखिए कि आदिवासी का भरोसा कांग्रेस के साथ रहा. अगर 47 सीटों में से 24 सीटों पर बीजेपी जीती तो 22 सीटें कांग्रेस के खाते में भी आई. इन नतीजों ने बताया कि आदिवासी का भरोसा कांग्रेस के ही साथ है. भले उसे भरमाने के कितने प्रयास किए जाएं."

चुने गए 120 आदिवासी नौजवान जो ट्रेनिग का हिस्सा बने

कांग्रेस ने बाकायदा 89 आदिवासी विकासखंड और जो आदिवासी सीटें हैं. वहां से राजनीति में आने के इच्छुक नौजवानों को प्रदेश कांग्रेस कमेटी आमंत्रित किया था. इनका बाकायदा अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी और मध्य प्रदेश कांग्रेस के आदिवासी विभाग ने साक्षात्कार लिया, दो राउंड के इंटरव्यू के बाद जो छंटनी होकर 120 आदिवासी नौजवान बचे थे. उन्हें सात दिन के ट्राइबल लीडरशिप प्रोग्राम के लिए चुना गया.

मध्य प्रदेश में पार्टी का नया प्लान (ETV Bharat)

कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी कहते हैं, "इसे चुनावी प्रयोग के तौर पर ना देखा जाए. आदिवासी समाज के लिए कांग्रेस हमेशा खड़ी रही है और हमने उनका जीवन स्तर सुधारने का हर संभव प्रयास किया है. बीजेपी ही है जो इन्हें बांटना चाहती है. आरक्षण को समाप्त करने का नारा देकर संविधान को कमजोर करने में जुटी है बीजेपी. बीजेपी बांटने में लगी है. भील से भिलाला अलग. बैगा अलग, गोंड अलग है. जीतू कहते हैं असल में ये आजादी की दूसरी लड़ाई है."

2023 में कांग्रेस को मिली 22 सीटें

मध्य प्रदेश में 47 सीटें आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित हैं. प्रदेश में करीब 24 फीसदी आदिवासी वर्ग है. बीते चुनाव की बात करें तो केवल यही आदिवासी वर्ग था, जिसने हार के बावजूद भी कांग्रेस की साख बचाई. 47 आदिवासी सीटों में से 24 पर अगर बीजेपी को जीत मिली तो कांग्रेस 22 सीटों पर कब्जा जमा पाई. जबकि 2018 के विधानसभा चुनाव में सत्ता में आने के बावजूद 30 सीटों पर बीजेपी की जीत हुई थी.

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