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यूपी के जल जीवन मिशन में सोलर पावर मॉडल जानिए कौन से राज्य अपनाएंगे

जल जीवन मिशन की परियोजनाओं में सोलर पावर के इस्तेमाल की बात होगी.

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यूपी के जल जीवन मिशन में सोलर पावर मॉडल जानिए कौन से राज्य अपनाएंगे (Photo Credit; Etv Bharat)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Nov 21, 2024, 1:03 PM IST

लखनऊ: छत्तीसगढ़ के रायपुर में भारत सरकार द्वारा आयोजित की जा रही रीजनल कॉन्फ्रेंस ऑन गुड गवर्नेंस में, यूपी में जल जीवन मिशन की परियोजनाओं में सोलर पावर के इस्तेमाल की बात होगी. 21 नवंबर से शुरू होने वाली दो दिवसीय कॉन्फ्रेंस में इनोवेशन स्टेट के तौर पर पहले सत्र में नमामि गंगे विभाग के अपर मुख्य सचिव जल जीवन मिशन में सोलर पावर के इस्तेमाल पर व्याख्यान देंगे. कॉन्फ्रेंस में देशभर से आए आईएएस अफसर जानेंगे कि किस तरह से उत्तर प्रदेश जल जीवन मिशन की परियोजनाओं में सोलर पावर का इस्तेमाल कर परियोजना की लागत को कम कर रहा है.

साथ ही साथ कॉर्बन उत्सर्जन कम करके पर्यावरण को भी सुरक्षित करने में अहम भूमिका निभा रहा है. भारत सरकार की तरफ से आयोजित की जा रही इस कॉन्फ्रेंस का मकसद है कि देश के दूसरे राज्य भी इसी तरह का मॉडल अपने-अपने राज्यों में अपनाएं. जिससे बिजली की बचत हो सके और परियोजनाएं लंबे समय तक चल सकें.

उत्तर प्रदेश में जल जीवन मिशन की 80 प्रतिशत से अधिक परियोजनाएं सोलर पावर पर आधारित हैं. जल जीवन मिशन परियोजना में इतने बड़े पैमाने पर सोलर पावर का इस्तेमाल करने वाला उत्तर प्रदेश देश का पहला राज्य है.
उत्तर प्रदेश में जल जीवन मिशन के अंतर्गत यूपी में कुल 41539 परियोजनाएं हैं. जिसमें से 33,157 जल जीवन मिशन के प्रोजेक्ट्स में सोलर एनर्जी का उपयोग किया जा रहा है. जिससे रोजाना 900 मेगावाट बिजली पैदा हो रही है. ऐसा करने वाला उत्तर प्रदेश देश का अग्रणी राज्य है.


सोलर तकनीक से पानी निकालने के लिए बिजली का खर्च 50 प्रतिशत से भी होगा कम

  • सोलर तकनीक के इस्तेमाल से गांवों में की जाने वाली जलापूर्ति की लागत में 50 प्रतिशत से अधिक की कमी आई है. साथ ही पानी की सप्लाई के लिए इलेक्ट्रिसिटी पर निर्भर नहीं रहना पड़ता है.
  • लो मेंटेनेंस के साथ-साथ इन सौर ऊर्जा संयंत्रों की आयु 30 साल होती है. 30 साल के दौरान इन परियोजनाओं का संचालन सौर ऊर्जा के जरिए होने से करीब 1 लाख करोड़ रुपये की बचत होगी. इससे करीब 13 लाख मीट्रिक टन कार्बन डाई ऑक्साइड का इमिशन प्रतिवर्ष कम होगा.

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