नर्मदापुरम/उज्जैन : कार्तिक पूर्णिमा पर नर्मदा नदी और तवा नदी के संगम स्थल पर स्नान करने का विशेष महत्व है. कार्तिक पूर्णिमा पर यहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु स्नान करने पहुंचते हैं. बांद्राभान में इस वर्ष 13 से 15 नवंबर तक तीन दिवसीय मेले का आयोजन किया गया. मेले में कार्तिक पूर्णिमा पर मुख्य स्नान करने का बहुत महत्व है. श्रद्धालु स्नान करने और मोक्ष की कामना लिए संगम स्थल पर पहुंचे. वहीं जिला प्रशासन की ओर से मेले को लेकर सारी व्यवस्थाएं की गईं.
राजा को कैसे मिली थी श्राप से मुक्ति
कार्तिक माह की पूर्णिमा पर संगम स्थल बांद्राभान मेले को लेकर कई मान्यताएं हैं. मान्यता के अनुसार प्राचीन समय में एक राजा को श्राप मिला था कि वह बंदर की तरह दिखाई देगा. श्राप के बाद से ही राजा का रूप वानर जैसा हो गया. इस श्राप से मुक्ति पाने के लिए राजा नर्मदा और तवा नदी के संगम स्थल बांद्राभान पर आया और उसने तपस्या की. तपस्या के कारण उसे इस श्राप से मुक्ति मिली. तब जाकर उस राजा को मोक्ष की प्राप्ति हुई. तब से इस जगह को बांद्राभान कहा जाने लगा.
कार्तिक पूर्णिमा पर नर्मदा पर आस्था का सैलाब (ETV BHARAT) होमगार्ड की प्लाटून कमांडर अमृता दीक्षित (ETV BHARAT) बांद्राभान मेला की पौराणिक कथा बड़ी रोचक (ETV BHARAT) पांडवों ने यहां की थी कठोर तपस्या
एक अन्य मान्यता के अनुसार यहां पांडवों ने प्राचीन समय मे निवास किया था और उन्होंने यहां तपस्या की थी. ऐसे कई ऋषि-मुनि हुए, जिन्होंने इस संगम स्थल पर तपस्या करते हुए मोक्ष पाया. किंवदंती है कि संगम स्थल पर कई तपस्वियों ने मोक्ष के लिए तपस्या की थी. वहीं, होमगार्ड की प्लाटून कमांडर अमृता दीक्षित ने बताया मेले में सुबह से करीब डेढ़ लाख श्रद्धालुओं ने स्नान कर लिया है. पुलिस प्रशासन और होमगार्ड लगातार मौके पर तैनात है. प्रशासन द्वारा पर्याप्त व्यवस्थाएं बनाई गई हैं.
कार्तिक पूर्णिमा पर उज्जैन के शिप्रा तट का नजारा (ETV BHARAT) उज्जैन में शिप्रा में हजारों श्रद्धालुओं ने लगाई डुबकी
उज्जैन में भी कार्तिक पूर्णिमा के पावन अवसर पर मां शिप्रा के तट पर हजारों श्रद्धालुओं ने आस्था की डुबकी लगाई. शुक्रवार सांझ ढलते ही दीपदान का आयोजन होगा, जिसमें श्रद्धालु दीप जलाकर शिप्रा नदी में प्रवाहित करेंगे. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा का दिन धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है. इस दिन पवित्र नदियों में स्नान और दान-दक्षिणा का विशेष महत्व है, जिससे श्रद्धालु पुण्य अर्जित करते हैं. पंडित राकेश जोशी ने बताया कि कार्तिक पूर्णिमा का धार्मिक महत्व अत्यधिक है. देवउठनी ग्यारस से शुरू होकर कार्तिक पूर्णिमा तक देव दिवाली मनाने की परंपरा है.