धार।धार के शहर काजी वकार सादिक ने शुक्रवार को दावा करते हुए कहा "भोजशाला का सर्वे 1902 के बाद एक बार और हो चुका है. उस समय अटल सरकार ने हाईकोर्ट में दिए अपने जवाब में धार के विवादित स्थल को कमाल मौला मस्जिद बताया था. उस रिपोर्ट में स्पष्ट लिखा है कि भोजशाला कहां है, यह एक मिस्ट्री है. यह रिपोर्ट पहले से हाईकोर्ट के रिकॉर्ड पर है. इसलिए अब आर्कियोलॉजिकल सर्वे अपनी पुरानी रिपोर्ट से पलट नहीं सकता."
इंदौर शहर काजी फिर जाएंगे सुप्रीम कोर्ट
इंदौर हाईकोर्ट में हाल ही में दायर इस मामले की याचिका में हिंदू प्रतीक चिह्न मिलने के दावे पर शहर काजी वकार सादिक का कहना है "भोजशाला एक निर्जीव इमारत है. कोई पेड़ पौधा नहीं है जो अब उस पर फल लगने लगे हों. इसलिए 1902 के बाद यदि वहां कोई बदलाव हुए हैं तो आर्कियोलॉजिकल की टीम इसकी भी जांच करेगी कि यह चीज कहां से आई. हमें आर्कियोलॉजिकल सर्वे पर पूरा विश्वास है." सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई खारिज होने के सवाल पर शहर काजी का कहना था "कोर्ट ने फिलहाल इस केस को इमरजेंसी में सुनने से इनकार किया है. इसमें हम आगे पूरी तैयारी से फिर से कोर्ट के समक्ष उपस्थित होंगे.'
मुस्लिम समाज सभी पक्षों को नहीं बनाया पक्षकार
धार शहर काजी ने हाईकोर्ट में दायर केस में भी मुस्लिम समाज के सभी पक्षों को पक्षकार नहीं बनाए जाने पर नाराजगी जताई. उन्होंने कहा "इंदौर हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान मजार के मुअकिल, कब्रिस्तान वालों को उर्स कमेटी को और इमाम को पक्षकार नहीं बनाया गया. रोड पर चलते किसी व्यक्ति को पक्षकार बनाए जाने से यह पूरे समाज का मामला नहीं हो जाता. इसलिए अब कमल मौलाना समिति के संबंधित व्यक्ति को बुलाया जाएगा. इसके बाद हम सभी लोग चर्चा करके इस केस में आगे मूव करेंगे." उन्होंने कहा कि धार में हिंदू और मुस्लिम हमेशा एक होकर रहे हैं लेकिन 10-15 बाहरी लोग इस पूरे मामले को खड़ा करना चाहते हैं. ये लोग कौन हैं, यहां कैसे आ गए, हमें पक्षकार क्यों नहीं बनाया.