रांचीः बजट सत्र के तीसरे दिन झारखंड विधानसभा में हजारीबाग के इचाक में शिवरात्रि के अवसर पर दो गुटों में हुई झड़प का मामला छाया रहा. सदन की कार्यवाही दिन के 11:00 बजे जैसे ही शुरू हुई सदन में इचाक की घटना पर शोर-गुल शुरू हो गया. हालांकि, विधानसभा अध्यक्ष रबीन्द्रनाथ महतो भाजपा विधायकों को समझने में सफल रहे और तत्पश्चात प्रश्न काल की शुरुआत हुई.
सीपी सिंह की टिप्पणी से माहौल गरमाया
प्रश्नकाल के दौरान भाजपा विधायक सीपी सिंह ने सरकार के दो-दो मंत्री पर जैसे ही तीखी टिप्पणी की सदन का माहौल गरमा गया. दरअसल, सीपी सिंह मंईयां सम्मान योजना की लंबित राशि और 18-50 साल की हर महिलाओं को सम्मान राशि देने की मांग कर रहे थे. वे मंईयां सम्मान योजना के प्रावधान में विधवा और विकलांग महिलाओं को भी सम्मिलित करने की मांग सरकार से कर रहे थे.
सदन में क्या कहा सीपी सिंह ने
इस दौरान सीपी सिंह ने सरकार की ओर से सदन में जवाब दे रहे मंत्री चमरा लिंडा पर टिप्पणी करते हुए कहा कि 'हेलमेट पहने कौन मंत्री हैं, उन्हें हम पहचान नहीं पा रहे हैं'. साथ ही उन्होंने स्वास्थ्य मंत्री इरफान अंसारी के बारे में कहा कि 'वे मदरसा में पढ़कर आए हैं इस वजह से शब्द ज्ञान नहीं है'. आपको बता दें कि चमरा लिंडा सदन में टोपी पहने हुए थे और सरकार की ओर से सीपी सिंह के सवाल का जवाब दे रहे थे. वहीं सीपी सिंह की इस टिप्पणी के बाद सदन का माहौल गरमा गया. हालांकि स्पीकर स्थिति को संभालने में सफल रहे. सरकार की ओर से मंत्री चमरा लिंडा ने जवाब देते हुए कहा कि 15 मार्च तक जनवरी-फरवरी की बकाया राशि का भुगतान हो जाएगा. उन्होंने केन्द्रीय मद से विकलांग और विधवा पेंशन मद में राशि बढ़वाने का आग्रह सीपी सिंह से किया.
विधायक प्रदीप यादव ने अपनी ही सरकार को घेरा
बजट सत्र के तीसरे दिन भोजनावकाश से पहले प्रश्नकाल के अलावे शून्यकाल और ध्यानाकर्षण के जरिए सदन में विधायकों के द्वारा सवाल उठाए जाते रहे. इस दौरान सत्ता पक्ष के कई विधायक अपनी ही सरकार की कार्यशैली पर सवाल खड़ा करते रहे. विधायक हेमलाल मुर्मू ने सदन में धान खरीद की धीमी रफ्तार और बिचौलियों के कारण किसानों को हो रही परेशानी से अवगत कराते हुए अपनी ही सरकार की कार्यशैली की जमकर खिंचाई की. इस विषय पर हेमलाल के साथ-साथ विधायक मथुरा महतो ने भी सदन में खड़ा होकर धान खरीद में सुखती काटे जाने पर सवाल खड़ा किया. उन्होंने कहा कि जिस वजह से किसान बिचौलिए की शरण में जाने को मजबूर हैं और सरकार की व्यवस्था धरी की धरी रह जाती है.