बालाघाट।महर्षि वाल्मीकि की रामायण के प्रारंभ में सारस पक्षी का उल्लेख है. ये पक्षी प्रेम, शांति व खुशी का प्रतीक माना जाता है. ये पक्षी अपने साथी के लिए जान भी दे सकता है. इन दिनों बालाघाट के वैनगंगा के तट सारस पक्षियों का डेरा है. वैनगंगा नदी के तट सारस पक्षी के लिए शरणस्थली माने जाते हैं. कुछ दिन पूर्व सेवा संस्था द्वारा वन विभाग, जिला पुरातत्व संस्कृति परिषद व स्थानीय किसान सारसमित्र के सहयोग से की गई गणना में कई बातें सामने आई हैं. जिले में 25 दलों द्वारा सारस पक्षियों की गणना की गई.
सारस के घोंसलों का किया निरीक्षण
सारस की गणना करने वाले दल ने ऐसे 60-70 स्थलों पर सारस या क्रोंच पक्षी के घोंसले या शरणस्थल देखे हैं. बालाघाट में गणना कार्य प्रकल्प प्रभारी सावन बहेकार के निर्देशन में किया गया. बालाघाट के अलावा गोंदिया और भंडारा जिले में भी इस तरह की गणना की गई है. हालांकि इस वर्ष की गणना में पिछले वर्ष की तुलना में 3 सारस की कमी आयी है. वर्ष 2023 में 48 क्रोंच पक्षी देखे गए थे. इस वर्ष 45 बालाघाट में, गोंदिया में 28 और भंडारा में 4 पक्षी मिले हैं.
क्या है सारस की विशेषताएं, क्यों आकर्षित करता है
सारस पक्षी को क्रोंच पक्षी के नाम से जाना जाता है. यह पक्षी बड़ा खूबसूरत है. ये एक ही घोंसले में वर्षों तक रहते हैं. उत्तर प्रदेश के राजकीय पक्षी के रूप में इसे मान्यता है. यह गंगा नदी के मैदानी भागों में बहुतायत में पाया जाता है. ये लम्बे पैरों और ऊंची गर्दन व चोंच वाले होते है. गर्दन कत्थई या लाल रंग की भी होती है, जबकि पूरा सफेद रंग के होने से जल में जब दिखाई पड़ते हैं तो बड़े ही खूबसूरत लगते हैं.