शिमला: हिमाचल की चार सीटों में से दो सीटों का चुनाव बहुत ही रोचक होगा. मंडी सीट कंगना रनौत के कारण हॉट सीट बनी हुई है, तो अब कांग्रेस ने आनंद शर्मा को चुनावी रण में उतार कर कांगड़ा सीट को भी चर्चा में ला दिया है. आनंद शर्मा कांग्रेस के इलीट क्लास वाले लीडर्स में से एक माने जाते हैं. वे कभी लोकसभा चुनाव के मैदान में किस्मत आजमाने नहीं उतरे. वे चार बार राज्यसभा के जरिए केंद्र की राजनीति में सक्रिय रहे. यूपीए सरकार में ताकतवर मंत्रालय संभालने वाले आनंद शर्मा ने जी-23 समूह में शामिल होकर पार्टी में आमूल-चूल परिवर्तन को लेकर आवाज बुलंद की थी, लेकिन वे कांग्रेस से अलग नहीं हुए.
कालीबाड़ी मंदिर में शीश झुकाकर करेंगे शुरुआत
छात्र राजनीति सहित कांग्रेस के साथ अपनी सियासी यात्रा के पांच दशक के सफर में आनंद शर्मा ने सिर्फ एक विधानसभा चुनाव लड़ा. उस चुनाव में वे भाजपा के दिग्गज नेता दौलतराम चौहान से पराजित हुए थे. उसके बाद आनंद शर्मा ने कोई चुनाव नहीं लड़ा. वे राज्यसभा से ही निर्वाचित होते रहे. अब कांग्रेस ने उन्हें कांगड़ा से चुनाव लड़ने के लिए मैदान में उतारा है. आनंद शर्मा अपने इस नए सफर की शुरुआत शिमला के कालीबाड़ी मंदिर में शीश झुकाकर करेंगे. अब आनंद शर्मा को पहली बार लोकसभा के रण में उतरने पर सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू सहित कांगड़ा से कांग्रेस विधायकों का साथ चाहिए. चुनावी वैतरणी पार करने के लिए आनंद शर्मा की आशा इसी फैक्टर पर टिकी है. यहां आगे की पंक्तियों में आनंद शर्मा के पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ने और इसके हिमाचल और खुद आनंद शर्मा के सियासी सफर पर पड़ने वाले असर के संभावित परिदृश्य पर नजर डालेंगे.
कांगड़ा से कांग्रेस में आखिर आनंद ही क्यों?
आनंद शर्मा ने बेशक जी-23 समूह में शामिल होकर पार्टी में परिवर्तन की जरूरत की वकालत की हो, लेकिन वे दल से अलग नहीं हुए. आनंद शर्मा गांधी परिवार के करीबी रहे हैं. इंदिरा गांधी व राजीव गांधी का उन पर भरोसा रहा है. यही कारण है कि सोनिया गांधी के दौर में वे यूपीए सरकार में ताकतवर मंत्री रहे. इधर, सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू भी आनंद शर्मा कैंप के ही माने जाते रहे हैं. कांगड़ा सीट पर जब प्रत्याशी को लेकर मंथन चल रहा था तो एक ब्राह्मण चेहरे को उतारने की बात हुई. पहले आशा कुमारी, आरएस बाली व डॉ. राजेश शर्मा के नाम पर भी चर्चा हुई. इनमें से आरएस बाली ने पहले ही पार्टी मुखिया मल्लिकार्जुन खड़गे को पत्र लिखकर परोक्ष रूप से चुनाव लड़ने में असमर्थता जताई थी. आशा कुमारी के नाम पर सहमति नहीं बन रही थी. ऐसे में आनंद शर्मा से चर्चा की गई और उनका मन टटोला गया. आनंद शर्मा के लिए सीएम सुक्खू ने भी पैरवी की और सभी के सहयोग का भरोसा दिलाया. इसी भरोसे को देखते हुए आनंद शर्मा ने भी हामी भर दी.
प्रचार में भाजपा आगे, आनंद के सामने कम नहीं चुनौतियां
भाजपा ने अपने लोकसभा प्रत्याशी काफी पहले घोषित कर दिए थे. कांग्रेस इस मामले में पिछड़ गई. पहले भाजपा ने 13 मार्च को हमीरपुर से अनुराग ठाकुर व शिमला से सुरेश कश्यप का नाम फाइनल किया और फिर 24 मार्च को कांगड़ा से राजीव भारद्वाज व मंडी से कंगना रनौत को टिकट घोषित किया. वहीं, कांग्रेस ने कांगड़ा व हमीरपुर से बहुत देरी से प्रत्याशी घोषित किए. कांग्रेस के कांगड़ा व हमीरपुर से प्रत्याशी चयन से काफी पहले ही भाजपा प्रचार वार में आगे निकल गई है. इसका मनोवैज्ञानिक लाभ भाजपा को होगा. वहीं, आनंद शर्मा के समक्ष भी चुनौतियां कम नहीं हैं. वे कभी लोकसभा चुनाव नहीं लड़े और न ही उन्होंने कड़ी धूप में गांव-गांव-गली-गली धूल फांकते हुए प्रचार किया है. ये उनके लिए चुनावी राजनीति का नया अनुभव है. भाजपा कार्यकर्ता ये मान कर चल रहे हैं कि आनंद शर्मा कांग्रेस की इलीट परंपरा के नाम हैं और एयर कंडीशंड सुविधाओं के आदी हैं. ऐसे में वे कड़ी धूप व कठिन भौगोलिक परिस्थितियों में प्रचार कैसे करेंगे. आनंद शर्मा इस समय 71 साल के हैं, लेकिन उनका मानना है कि वे पीएम नरेंद्र मोदी से अभी आयु में कम हैं. भाजपा कार्यकर्ता इस बात को भी प्रमुखता से उठा रहे हैं कि यदि कांग्रेस कंगना को बाहरी यानी मुंबई की बताते हैं तो क्या आनंद शर्मा भी कांगड़ा के लिए बाहरी नहीं हैं?