प्रयागराज:इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि हिंदू व्यक्ति पर अपनी बेटी का भरण-पोषण करने का वैधानिक दायित्व है. हिंदू दत्तक ग्रहण एवं भरण-पोषण अधिनियम 1956 की धारा 20 के तहत बेटी अविवाहित हो और अपनी कमाई या अन्य संपत्ति से अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हो.
यह आदेश न्यायमूर्ति मनीष कुमार निगम ने फैमिली कोर्ट हाथरस के फैसले को चुनौती देने वाली अवधेश सिंह की निगरानी याचिका को खारिज करते हुए दिया. मामले के तथ्यों के अनुसार प्रधान पारिवारिक न्यायाधीश हाथरस ने पत्नी को 25,000 रुपये प्रतिमाह और बेटी (गौरी नंदिनी) को 20,000 रुपये प्रतिमाह भरण-पोषण देने का निर्देश दिया था. पत्नी और बेटी ने भी भरण-पोषण राशि बढ़ाने की मांग करते हुए याचिका की. दोनों याचिकाओं पर एकसाथ सुनवाई कर एकसाथ निर्णय लिया गया.
1992 में अवधेश सिंह ने विवाह किया था. पत्नी ने कहा कि उसके पति और पति के परिवार वालों ने उससे और उसकी बेटी दुर्व्यवहार किया. फरवरी 2009 में उसे उसकी बेटी के साथ ससुराल से बाहर निकाल दिया. पत्नी के पास खुद का और बेटी का भरण-पोषण करने का कोई साधन नहीं था इसलिए उसने ससुराल से निकाले जाने की तिथि से भरण-पोषण की मांग करते हुए न्यायालय में याचिका की.
पति का मामला यह था कि गौरी नंदिनी (पुत्री) का जन्म 25 जून 2005 को हुआ था. वह 26 सितम्बर 2023 के आदेश से पूर्व 25 जून 2023 को वयस्क हो गई थी, इसलिए पारिवारिक न्यायालय ने बेटी को भरण-पोषण देने में कानूनी त्रुटि की है, जो आदेश की तिथि पर वयस्क थी और धारा 125 सीआरपीसी के प्रावधानों के मद्देनजर भरण-पोषण की हकदार नहीं थी. तर्क दिया गया कि सर्वोच्च न्यायालय ने अभिलाषा के मामले में माना था कि अविवाहित बेटी जो वयस्क हो गई है और किसी मानसिक या शारीरिक असामान्यता से ग्रस्त नहीं है, वह सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण का दावा करने की हकदार नहीं है.