हैदराबाद: सनातन धर्म में हर ग्रंथ का महत्व है. चाहे वह रामायण हो, महाभारत या फिर भगवद्गीता. आज गीता जयंती है. ऐसी मान्यता है कि आज ही के दिन भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था. इसलिए हर वर्ष इस तिथि पर गीता जयंती मनाई जाती है.
लखनऊ के ज्योतिषाचार्य डॉ. उमाशंकर मिश्र ने बताया कि मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी को गीता का उपदेश दिया गया था. इसके साथ-साथ हनुमान, बर्बरीक और संजय को भी ज्ञान की प्राप्ति हुई थी. इस वजह से गीता जयंती मनाने का प्रावधान है. उन्होंने कहा कि गीता के पाठ से जातकों को मुक्ति, मोक्ष और शांति मिलती है और समस्याओं का निदान होता है.
ज्योतिषाचार्य ने कहा कि इस अवसर पर सभी लोगों को कुछ श्लोकों का जाप करना चाहिए. इन श्लोकों में मैनेजमेंट सूत्र छिपे हैं, जो हर समस्याओं को चुटकी में दूर कर देते हैं. आइये जानते हैं.
- विहाय कामान् य: कर्वान्पुमांश्चरति निस्पृह:
निर्ममो निरहंकार स शांतिमधिगच्छति।।
अर्थ- जो मनुष्य सभी इच्छाओं व कामनाओं को त्याग कर ममता रहित और अहंकार रहित होकर अपने कर्तव्यों का पालन करता है, उसे ही शांति प्राप्त होती है.
मैनेजमेंट सूत्र - यहां भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि मन में किसी भी प्रकार की इच्छा व कामना को रखकर मनुष्य को शांति प्राप्त नहीं हो सकती. इसलिए शांति प्राप्त करने के लिए सबसे पहले मनुष्य को अपने मन से इच्छाओं को मिटाना होगा. हम जो भी कर्म करते हैं, उसके साथ अपने अपेक्षित परिणाम को साथ में चिपका देते हैं. अपनी पसंद के परिणाम की इच्छा हमें कमजोर कर देती है. वो ना हो तो व्यक्ति का मन और ज्यादा अशांत हो जाता है. मन से ममता अथवा अहंकार आदि भावों को मिटाकर तन्मयता से अपने कर्तव्यों का पालन करना होगा. तभी मनुष्य को शांति प्राप्त होगी. - न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्
कार्यते ह्यश: कर्म सर्व प्रकृतिजैर्गुणै:।।
अर्थ-कोई भी मनुष्य क्षण भर भी कर्म किए बिना नहीं रह सकता. सभी प्राणी प्रकृति के अधीन हैं और प्रकृति अपने अनुसार हर प्राणी से कर्म करवाती है और उसके अनुसार परिणाम भी देती है.
मैनेजमेंट सूत्र- बुरे परिणामों के डर से अगर ये सोच लें कि हम कुछ नहीं करेंगे तो ये हमारी मूर्खता है. खाली बैठे रहना भी एक तरह का कर्म ही है, जिसका परिणाम हमारी आर्थिक हानि, अपयश और समय की हानि के रूप में मिलता है. सारे जीव प्रकृति यानी परमात्मा के अधीन हैं, वो हमसे अपने अनुसार कर्म करवा ही लेगी. और उसका परिणाम भी मिलेगा ही. इसलिए कभी भी कर्म के प्रति उदासीन नहीं होना चाहिए, अपनी क्षमता और विवेक के आधार पर हमें निरंतर कर्म करते रहना चाहिए. - नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मण:
शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्धयेदकर्मण:।।
अर्थ-शास्त्रों में बताया गया है कि अपने धर्म के अनुसार कर्म कर, क्योंकि कर्म न करने की अपेक्षा कर्म करना श्रेष्ठ है तथा कर्म न करने से तेरा शरीर निर्वाह भी नहीं सिद्ध होगा.
मैनेजमेंट सूत्र- श्रीकृष्ण अर्जुन के माध्यम से मनुष्यों को समझाते हैं कि हर मनुष्य को अपने-अपने धर्म के अनुसार कर्म करना चाहिए जैसे- विद्यार्थी का धर्म है विद्या प्राप्त करना, सैनिक का कर्म है देश की रक्षा करना. जो लोग कर्म नहीं करते, उनसे श्रेष्ठ वे लोग होते हैं जो अपने धर्म के अनुसार कर्म करते हैं, क्योंकि बिना कर्म किए तो शरीर का पालन-पोषण करना भी संभव नहीं है. जिस व्यक्ति का जो कर्तव्य तय है, उसे वो पूरा करना ही चाहिए. - यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते।।
अर्थ-श्रेष्ठ पुरुष जैसा आचरण करते हैं, सामान्य पुरुष भी वैसा ही आचरण करने लगते हैं. श्रेष्ठ पुरुष जिस कर्म को करता है, उसी को आदर्श मानकर लोग उसका अनुसरण करते हैं.
मैनेजमेंट सूत्र- यहां भगवान श्रीकृष्ण ने बताया है कि श्रेष्ठ पुरुष को सदैव अपने पद व गरिमा के अनुसार ही व्यवहार करना चाहिए, क्योंकि वह जिस प्रकार का व्यवहार करेगा, सामान्य मनुष्य भी उसी की नकल करेंगे. जो कार्य श्रेष्ठ पुरुष करेगा, सामान्यजन उसी को अपना आदर्श मानेंगे. उदाहरण के तौर पर अगर किसी संस्थान में उच्च अधिकार पूरी मेहनत और निष्ठा से काम करते हैं तो वहां के दूसरे कर्मचारी भी वैसे ही काम करेंगे, लेकिन अगर उच्च अधिकारी काम को टालने लगेंगे तो कर्मचारी उनसे भी ज्यादा आलसी हो जाएंगे. - न बुद्धिभेदं जनयेदज्ञानां कर्म संगिनाम्
जोषयेत्सर्वकर्माणि विद्वान्युक्त: समाचरन्।।
अर्थ- ज्ञानी पुरुष को चाहिए कि कर्मों में आसक्ति वाले अज्ञानियों की बुद्धि में भ्रम अर्थात कर्मों में अश्रद्धा उत्पन्न न करे किंतु स्वयं परमात्मा के स्वरूप में स्थित हुआ और सब कर्मों को अच्छी प्रकार करता हुआ उनसे भी वैसे ही कराए.
मैनेजमेंट सूत्र- ये प्रतिस्पर्धा का दौर है, यहां हर कोई आगे निकलना चाहता है. ऐसे में अक्सर संस्थानों में ये होता है कि कुछ चतुर लोग अपना काम तो पूरा कर लेते हैं, लेकिन अपने साथी को उसी काम को टालने के लिए प्रोत्साहित करते हैं या काम के प्रति उसके मन में लापरवाही का भाव भर देते हैं. श्रेष्ठ व्यक्ति वही होता है जो अपने काम से दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनता है. संस्थान में उसी का भविष्य सबसे ज्यादा उज्जवल भी होता है. - ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्
म वत्र्मानुवर्तन्ते मनुष्या पार्थ सर्वश:।।
अर्थ- हे अर्जुन। जो मनुष्य मुझे जिस प्रकार भजता है यानी जिस इच्छा से मेरा स्मरण करता है, उसी के अनुरूप मैं उसे फल प्रदान करता हूं. सभी लोग सब प्रकार से मेरे ही मार्ग का अनुसरण करते हैं.
मैनेजमेंट सूत्र- इस श्लोक के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण बता रहे हैं कि संसार में जो मनुष्य जैसा व्यवहार दूसरों के प्रति करता है, दूसरे भी उसी प्रकार का व्यवहार उसके साथ करते हैं. उदाहरण के तौर पर जो लोग भगवान का स्मरण मोक्ष प्राप्ति के लिए करते हैं, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है. जो किसी अन्य इच्छा से प्रभु का स्मरण करते हैं, उनकी वह इच्छाएं भी प्रभु कृपा से पूर्ण हो जाती है. कंस ने सदैव भगवान को मृत्यु के रूप में स्मरण किया. इसलिए भगवान ने उसे मृत्यु प्रदान की. हमें परमात्मा को वैसे ही याद करना चाहिए, जिस रुप में हम उसे पाना चाहते हैं.
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