नई दिल्ली:दार्जिलिंग चाय, जिसे चाय की शैंपेन माना जाता है. आज इस चाय का अस्तित्व संकट में पड़ गया है. 2023 में उत्पादन घटकर 6.3 मिलियन किलोग्राम रह गया है, जो 50 वर्षों में सबसे कम है. दार्जिलिंग जिले के 87 चाय बागानों में से आधे बिक्री के लिए तैयार हैं और जापान, जो कभी दार्जिलिंग चाय का सबसे बड़ा खरीदार था, ने अपना आयात कम कर दिया है.
दार्जिलिंग चाय बागान मालिकों को हो रहा नुकसान
निर्यातकों और दार्जिलिंग चाय बागान मालिकों ने कहा कि दार्जिलिंग चाय उद्योग आईसीयू में है. इसे पुनर्जीवित करने के लिए केंद्र सरकार को तत्काल ध्यान देने की जरूरत है. ये कह सकते है कि अगर सरकार ने तुंरत ध्यान नहीं दिया तो ये इंडस्ट्री खत्म हो जाएगी.
गोरखा मोर्चा से नहीं उबर पाया दार्जिलिंग चाय
दार्जिलिंग चाय उद्योग 2017 में गोरखा जनमुक्ति मोर्चा द्वारा पहाड़ियों में आंदोलन के दौरान मिले झटके से बाहर नहीं निकल सका है. बागान लगभग चार महीने तक बंद रहे और विदेशी खरीदार चले गए. कोविड महामारी ने दार्जिलिंग चाय बागानों की किस्मत को और खराब कर दिया.
सरकार से नहीं मिली मदद
बागान मालिकों को वित्तीय संकट का सामना करना पड़ा और वे चाय बागानों को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक धन नहीं लगा सके. आज तक, दार्जिलिंग चाय उद्योग को केंद्र से कोई रेस्टोरेशन पैकेज नहीं मिला है, भले ही उन्होंने सरकार को एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया हो.
नेपाल के आयात से हो रहा दार्जिलिंग चाय को नुकसान
सस्ती नेपाल चाय के आयात ने दार्जिलिंग चाय उद्योग के संकट को और गहरा कर दिया है, जो पहले से ही कम उत्पादन, निर्यात बाजारों में कम मांग और कम कीमत वसूली के कारण वित्तीय संकट से जूझ रहा है. व्यापार सूत्रों ने कहा कि नेपाल दार्जिलिंग चाय के निर्यात बाजारों में भी प्रवेश करने में सक्षम हो गया है और अब सीधे जर्मनी और जापान जैसे देशों को निर्यात कर रहा है. दार्जिलिंग के बागवान चिंतित हैं कि घरेलू उपभोक्ता नेपाल की चाय को दार्जिलिंग चाय के रूप में पी रहे हैं, जिससे उनकी मातृभूमि में भी उनका बाजार नष्ट हो रहा है.