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हिमालय की बिगड़ती सेहत को लेकर लामबंद हुईं 67 पर्यावरण संस्थाएं, चुनाव से पहले जारी किया डिमांड चार्टर - People for Himalaya Campaign 2024 - PEOPLE FOR HIMALAYA CAMPAIGN 2024

People for Himalaya Campaign Declaration 2024 जलवायु परिवर्तन का बड़ा असर पर्यावरण पर पड़ रहा है, जिसका खामियाजा आज नहीं तो कल हम सभी को किसी न किसी रूप में भुगतना होगा. इस समय दुनियाभर के पर्यावरणविदों की सबसे ज्यादा चिंता हिमालय की लगातार बिगड़ती सेहत को लेकर है. यही वजह है कि हिमालय राज्यों के भविष्य और पर्यावरण को लेकर देशभर के पर्यावरण संस्थाओं ने डिक्लेरेशन बनाकर डिमांड चार्टर जारी किया है.

People for Himalaya Campaign Declaration 2024
पीपल फॉर हिमालय अभियान

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Apr 1, 2024, 8:01 PM IST

Updated : Apr 1, 2024, 9:30 PM IST

हिमालय की बिगड़ती सेहत को लेकर लामबंद हुईं 67 पर्यावरण संस्थाएं

देहरादून (उत्तराखंड):हिमालय राज्यों के भविष्य और पर्यावरण को लेकर देशभर के विभिन्न संस्थाओं से जुड़े लोगों ने अपनी चिंता जाहिर की है. यही वजह है कि लोकसभा चुनाव 2024 से पहले कई राज्यों की 67 पर्यावरण संस्थाओं ने डिक्लेरेशन बनाकर डिमांड चार्टर जारी किया है. ताकि, हिमालय के इकोलॉजी को बचाया जा सके. इसके लिए पीपल फॉर हिमालय अभियान शुरू किया गया है. जिसके तहत आपदा मुक्त हिमालय की दिशा में मांग पत्र जारी किया गया है.

लद्दाख से फैली चिंगारी, हिमालय को लेकर लामबंद हुए देशभर के पर्यावरणविद्:हिमालय की इकोलॉजी से लगातार हो रहे छेड़छाड़ को लेकर तमाम हिमालयी राज्यों में अलग-अलग तरह के प्रदर्शन स्थानीय स्तर पर देखने को मिलते आए हैं. हाल ही में लद्दाख में सोनम वांगचुक के 21 दिन की भूख हड़ताल ने पूरे देशभर के पर्यावरणविदों और पर्यावरण से जुड़ी समाज सेवी संस्थाओं का ध्यान खींचा है.

पीपल फॉर हिमालय अभियान

उत्तराखंड में भी लगातार लंबे समय से जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति और यूथ फॉर हिमालय इस तरह के अभियान चलाते आ रहे हैं तो वहीं, अब अलग-अलग हिमालय राज्यों में एक तरह की समस्याओं का सामना कर रहे सभी लोग एकजुट होकर अपनी आवाज मजबूत कर रहे हैं.

पीपल फॉर हिमालय अभियान के तहत साथ आई देशभर की 67 संस्थाएं:जोशीमठ में यूथ फॉर हिमालय और जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति से जुड़े लोगों ने बताया कि देशभर के न केवल हिमालय राज्य, बल्कि अन्य राज्यों में भी पर्यावरण और समाज सेवा के क्षेत्र में काम करने वाली अग्रणी संस्थाएं अब अपने भविष्य को लेकर के चिंतित है. यही वजह है कि अब सभी संस्थाएं एक प्लेटफार्म पर आई है.

पीपल फॉर हिमालय अभियान में शामिल पर्यावरण संस्थाएं

यह सभी संस्थाएं 'पीपल फॉर हिमालय अभियान' के तहत अपनी मांगों को लोकसभा चुनाव से पहले सभी राजनीतिक दलों के सामने रख रहे हैं. जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के सदस्य अतुल सती ने ईटीवी भारत से बातचीत मेंबताया कि देश के नॉर्थ ईस्ट की सेवन सिस्टर यानी सात राज्य, उत्तराखंड, हिमाचल के अलावा जम्मू एवं कश्मीर, लद्दाख इन राज्यों में हिमालय की इकोलॉजी के साथ लगातार डिस्टरबेंस हो रहा है.

उन्होंने बताया कि हिमालयी क्षेत्रों में आपदाओं के पैटर्न के अलावा यहां पर होने वाले निर्माण एवं सरकार की ओर से बनाई जा रही पॉलिसियों को लेकर के देशभर की 67 संस्थाएं एकजुट होकर एक साथ आई हैं. जिनमें केवल हिमालय राज्यों की संस्थाएं नहीं, बल्कि दिल्ली के अलावा दक्षिण भारत के राज्यों से भी लोग हिमालय को लेकर भी चिंतित हैं.

67 पर्यावरण संस्थाओं ने गहन चर्चा के बाद जारी किया डिक्लेरेशन:अतुल सती ने बताया कि हाल ही में हिमाचल में एक बड़ा आयोजन किया गया था. जिसमें ये सभी संस्थाएं शामिल हुई थी. जहां विचार-विमर्श के बाद एक डिक्लेरेशन जारी किया गया. इस डिक्लेरेशन के आधार पर तमाम राजनीतिक दलों और देश के नीति नियंताओं के लिए एक डिमांड चार्टर की घोषणा की गई है.

उन्होंने ये भी बताया कि इस पूरे अभियान को 'पीपल फॉर हिमालय' अभियान का नाम दिया गया है. जिसमें सभी संस्थाओं की ओर से हिमालय क्षेत्र को लेकर आपदा मुक्त हिमालय की दिशा में मांग पत्र जारी किया गया है. जिसे पीपल फॉर हिमालय अभियान 2024 का नाम दिया गया है.

पीपल फॉर हिमालय अभियान 2024 के मुख्य बिंदु:पीपल फॉर हिमालय अभियान 2024 के तहत देशभर की साथ आई 67 पर्यावरण संस्थाओं ने मिलकर हिमालय की इकोलॉजी और यहां के बदलाव पर समीक्षा कर एक डिमांड चार्टर जारी किया है. जिसकी 5 मुख्य बिंदु कुछ इस तरह से हैं.

  • भूमि उपयोग में बदलाव और नियमित निगरानी के साथ योजनाओं का निर्माण.
  • प्रकृति पर आश्रित समुदायों के लिए भूमि और वन संसाधन अधिकार, प्रकृति आधारित आजीविका और संरक्षण को मजबूत करना.
  • पारदर्शिता, जानकारी का अधिकार और इसकी सुगमता.
  • लचीली और टिकाऊ पर्वतीय अर्थव्यवस्थाओं का निर्माण.
  • आपदा प्रबंधन को त्वरित और मजबूत करना.

राहुल गांधी से मिला समय, सत्ता और विपक्ष दोनों को सौंपा जाएगा मांग पत्र:जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के सदस्य अतुल सती ने बताया कि पीपल फॉर हिमालय अभियान 2024 हिमालय को सस्टेनेबल बनाने और भविष्य के प्रति हमारे योगदान का एक कदम है. उन्होंने बताया कि अलग-अलग राज्यों में खासकर हिमालय राज्यों पर समस्याएं एक जैसी हैं. उनके समाधान भी एक जैसे ही हैं.

उन्होंने बताया कि अब तक अलग-अलग टुकड़ों में हर राज्य में पर्यावरण संस्था से जुड़े लोग अपनी संवेदनाएं और अपने कंसर्न को सरकारों के सामने रखती आई है, लेकिन यह पहली बार है, जब सभी हिमालय राज्यों के लोगों के साथ देशभर के अन्य बुद्धिजीवी एक साथ मिलकर साथ आए हैं.

उन्होंने कहा कि उनकी ओर से अलग-अलग चरणों में की गई समीक्षा और उसके आधार पर निकाले गए डिक्लेरेशन के बाद एक डिमांड चार्टर की रचना पीपल फॉर हिमालय अभियान 2024 के रूप में की गई है. उन्होंने बताया कि अभी फिलहाल डिमांड चार्टर जारी किया गया है, इसके बाद राजनीतिक दलों को भी इसे सौंपा जाएगा.

वहीं, अतुल सती ने बताया कि देश में विपक्ष में मौजूद कांग्रेस के नेता राहुल गांधी से 1 अप्रैल को मिलने का समय मांगा गया था, लेकिन किसी कारणवश उनके मुलाकात नहीं हो पाई है. जल्द ही वो राहुल गांधी को इसे सौंपेंगे. साथ ही सत्ता पक्ष कि केंद्र सरकार से भी उन्होंने संपर्क करने की कोशिश की है. इसके अलावा बीजेपी के संकल्प पत्र समिति को भी वो इस मांग पत्र को देने का प्रयास करेंगे.

बीजेपी और कांग्रेस का एक-दूसरे पर आरोप:देश में इस वक्त लोकसभा चुनाव चल रहे हैं और सभी राजनीतिक दल इस वक्त अपने घोषणा पत्रों को लेकर के एक्सरसाइज कर रहे हैं. वहीं, ऐसे में बीजेपी ने संकल्प पत्र को लेकर पूरे प्रदेश भर में सुझाव एकत्रित किए. हालांकि, इतने बड़े प्लेटफार्म पर उठ रही मांग को बीजेपी ने अपने संकल्प पत्र में शामिल किया होगा या नहीं? इसके लिए ईटीवी भारत संवाददाता ने बीजेपी नेता से जानकारी ली.

बीजेपी के प्रदेश महामंत्री आदित्य कोठारी का कहना है कि निश्चित तौर से यह महत्वपूर्ण विषय है और पर्यावरण प्रेमियों की चिंता भी जायज है. जिसको लेकर केंद्र सरकार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद चिंतित हैं. आने वाली सरकार में इसका प्रतिबिंब देखने को मिलेगा.

वहीं, कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता गरिमा दसौनी ने आरोप लगाते हुए कहा कि हिमालय की लगातार दुर्दशा हो रही है. इसके पीछे बीजेपी की पर्यावरण विरोधी नीति है. जिसमें लगातार हिमालय का सीना चीरकर पर्यावरण मानकों को दरकिनार किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि देश के भविष्य को लेकर चिंता जता रहे बुद्धिजीवी लोगों की सुनने का समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास नहीं है.

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Last Updated : Apr 1, 2024, 9:30 PM IST

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