पटना : मिथिला के बारे में कहा जाता है कि परंपरा और कला के क्षेत्र में सदियों से इसका अपना अलग स्थान रहा है. कला के क्षेत्र में मिथिला पेंटिंग की ने इसको एक अलग पहचान दी. पूरी दुनिया में मिथिला की पहचान अब मिथिला पेंटिंग या मधुबनी पेंटिंग के रूप में होने लगी है. मधुबनी के रहने वाले राजकुमार लाल मिथिला पेंटिंग के वैसे परिवार से जुड़े हुए हैं जिनके परिवार के 15 सदस्यों को अब तक इस क्षेत्र में सम्मान मिल चुका है.
मिथिला चित्र कला सदियों पुरानी : मिथिला चित्रकला के बारे में यह कहा जाता है कि इस कला की शुरुआत त्रेतायुग यानी रामायण काल से हुई थी. कहा जाता है कि राजा विदेह यानी जनक ने सीता विवाह के समय अपने राजमहल और अन्य प्रमुख जगहों पर चित्रकला के माध्यम से घरों और दीवारों को सजवाया था. धीरे-धीरे पूजा के दौरान की जाने वाली कला मिथिलांचल की महिलाओं में प्रसिद्ध हुआ. सातवीं सदी के बाद यह चित्रकला पूरे मिथिलांचल में पहुंचा. आज स्थिति यह है कि यह कला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुकी है.
1970 के बाद राष्ट्रीय स्तर पर पहचान: कला के क्षेत्र में 60 के दशक के बाद मिथिला पेंटिंग की पहचान पूरे देश के स्तर पर होने लगी. 1970 में मिथिला पेंटिंग की प्रसिद्ध कलाकार जगदंबा देवी को पहली बार राष्ट्रीय पुरस्कार मिला. इसके बाद 1975 में जगदंबा देवी को कला के क्षेत्र में पहली बार पद्मश्री से सम्मानित किया गया. मिथिला पेंटिंग के क्षेत्र में अब तक नौ लोगों को पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है.
कौन हैं जगदम्बा देवी?: जगदंबा देवी का नाम मिथिला पेंटिंग के इतिहास में अमर रहेगा. उनका जन्म 25 फरवरी, 1901 को बिहार के मधुबनी जिले के भोजपंडौल गांव में हुआ था. वे एक ऐसी अद्वितीय कलाकार थीं, जिन्होंने अपनी कला के माध्यम से मिथिला पेंटिंग को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाई. 1975 में भारत सरकार ने उनकी कला और योगदान को सम्मानित करते हुए उन्हें 'पद्मश्री' से नवाजा. 4 जनवरी 1969 को अखिल भारतीय हस्तशिल्प बोर्ड ने मिथिला चित्रकला के क्षेत्र में उनके अद्वितीय योगदान के लिए उन्हें सम्मानित किया. उनकी कला ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर मिथिला पेंटिंग को विशेष स्थान दिलाया.
पूरे परिवार का पेंटिंग से जुड़ाव: मधुबनी के रहने वाले राजकुमार लाल पटना के दीघा में रहते हैं. उनके परिवार की पहचान मिथिला पेंटिंग कलाकारों के सबसे बड़े परिवार के रूप में होती है. राजकुमार लाल के परिवार के सभी सदस्य मिथिला पेंटिंग से जुड़े हुए हैं. सबसे बड़ी बात है कि उनके परिवार के सभी सदस्यों को प्रदेश स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक किसी न किसी अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है.
नानी मिथिला पेंटिंग की बड़ी कलाकार: ईटीवी भारत से बातचीत में राजकुमार लाल ने बताया कि ''मिथिला पेंटिंग में सबसे पहला बड़ा पुरस्कार उनकी नानी को मिला था. मधुबनी के जितवारपुर गांव की रहने वाली जगदंबा देवी को 1970 में कला के क्षेत्र में राष्ट्रीय पुरस्कार मिला इसके बाद 1975 में मिथिला पेंटिंग के क्षेत्र में उन्हें सबसे पहले पद्मश्री का अवार्ड मिला. उनको इस बात का फक्र है. उन्हीं की विरासत को मेरे परिवार के अन्य सदस्यों ने आगे बढ़ाया.''
नानी की विरासत मां ने बढ़ाया : राजकुमार लाल का कहना है कि नानी जगदंबा देवी के बाद उनकी मां यशोदा देवी ने आगे बढ़ने का काम किया. उसके बाद उनके परिवार के सभी सदस्य इस प्रोफेशन को आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं. उनकी मां यशोदा देवी को 1983 में मिथिला पेंटिंग के क्षेत्र में स्टेट अवार्ड से सम्मानित किया गया.
मामा-मामी भी अवार्ड विनर : राजकुमार लाल ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि उनको तीन मामा हैं. इनका पूरा ननिहाल मिथिला पेंटिंग से जुड़े हुए हैं. इनके मामा सत्यनारायण लाल कर्ण एवं मामी मोती कर्ण को 2003 में नेशनल अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है. दूसरे मामा जय नारायण लाल दास एवं मामी कुसुम दास को 2008 में मिथिला पेंटिंग के क्षेत्र में नेशनल अवार्ड मिल चुका है. तीसरे मामा कमल नारायण कर्ण को 1987 में स्टेट अवार्ड और मामी सविता कर्ण को 2010 में स्टेट अवार्ड मिल चुका है.