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हरेला को राष्ट्रीय पर्व घोषित करने के लिए मैराथन, तृतीय केदार तुंगनाथ से दिल्ली के लिए शुरू हुई दौड़ - Marathon from Tungnath Rudraprayag

Marathon from Tungnath Rudraprayag हरेला को राष्ट्रीय पर्व घोषित करने की मांग के लिए रुद्रप्रयाग के तुंगनाथ से दिल्ली तक मैराथन दौड़ शुरू हो चुकी है. मैराथन 24 सितंबर को दिल्ली पहुंचेगी और सांसद अनिल बलूनी के द्वारा पीएम मोदी को ज्ञापन सौंपा जाएगा.

Marathon from Tungnath Rudraprayag
हरेला पर्व को राष्ट्रीय पर्व घोषित करने के लिए मैराथन (PHOTO- ETV Bharat)

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Sep 19, 2024, 2:08 PM IST

रुद्रप्रयाग:देवभूमि उत्तराखंड के हरेला पर्व को राष्ट्रीय पर्व घोषित करने की मांग को लेकर 19 सितंबर गुरुवार सुबह तृतीय केदार तुंगनाथ मंदिर से नई दिल्ली के लिए 500 किमी हरेला मैराथन दौड़ रवाना हुई. इसमें उत्तराखंड की फ्लाइंग गर्ल भागीरथी बिष्ट और सिरमौरी चीता कहे जाने वाले अंतरराष्ट्रीय एथलीट सुनील शर्मा समेत अन्य कई प्रतिभाग कर रहे हैं.

हरेला को राष्ट्रीय पर्व घोषित करने के लिए मैराथन (VIDEO- ETV Bharat)

पहले दिन मैराथन तुंगनाथ मंदिर से चोपता, मक्कूमठ होते हुए रुद्रप्रयाग पहुंचेगी. समुद्रतल से 12,800 फीट की ऊंचाई पर स्थित तृतीय केदार तुंगनाथ मंदिर, विश्व में सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित शिवालय है. इस पावन स्थान से उत्तराखंड के लोकपर्व हरेला को राष्ट्रीय पर्व घोषित करने की मांग को लेकर राज्य, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के धावकों ने हरेला मैराथन शुरू की हैं, जो दिल्ली तक होगी.

मैराथन आयोजक अभिषेक मैठाणी ने बताया कि मैराथन 20 सितंबर को रुद्रप्रयाग से देवप्रयाग, 21 सितंबर को देवप्रयाग से ऋषिकेश, 22 सितंबर को ऋषिकेश से रामपुर-तिराहा मुजफ्फरनगर, 23 सितंबर को रामपुर तिराहा से मेरठ और 24 सितंबर को मेरठ से नई दिल्ली गढ़वाल भवन पहुंचेगी. दिल्ली में गढ़वाल सांसद अनिल बलूनी के माध्यम से मांगपत्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सौंपा जाएगा. इसमें हिमाचल प्रदेश निवासी अंतरराष्ट्रीय धावक सुनील शर्मा भी प्रतिभाग कर रहे हैं.

बता दें कि हरेला पर्व को उत्तराखंड में पारंपरिक परंपरा के साथ मनाया जाता है. विशेष तौर पर हरेला पर्व प्रकृति से जुड़ा हुआ है. जिसे हरियाली के आने का प्रतीक माना जाता है. इस त्योहार पर तमाम सरकारी और गैर सरकारी विभाग, आम लोग पौधा रोपण करते हुए पर्यावरण संरक्षण का संदेश देते हैं.

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