नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव 2024 में बस कुछ ही दिन बचे हैं, लेकिन उससे पहले सदियों पुराने कच्चातिवु द्वीप को लेकर राजनीतिक तनाव पैदा हो गया है. भाजपा ने कांग्रेस पर निर्दयतापूर्वक इस द्वीप को श्रीलंका को सौंपने का आरोप लगाया.
एक वरिष्ठ पूर्व भारतीय राजनयिक, जिन्होंने अतीत में श्रीलंका के साथ काम किया है. उनसे इस विषय पर बात की गई. उन्होंने नाम न छापने के आधार पर कहा कि यह तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी द्वारा राष्ट्रीय हित में लिया गया एक सही निर्णय था. इसमें राज्य सरकार की सहमति थी. भले ही इस द्वीप का 'भारत के लिए शून्य भू-राजनीतिक मूल्य' है.
पूर्व भारतीय राजनयिक ने ईटीवी भारत से विशेष बातचीत में कहा, 'कच्चातिवु का छोटा द्वीप, जो भारतीय कोने पर स्थित है. उसका तब तक कोई भू-राजनीतिक महत्व नहीं है जब तक कि श्रीलंका इसे चीन को सौंपने का फैसला नहीं करता. श्रीलंका के पास छोटे द्वीप के लिए कोई नकारात्मक रणनीतिक प्रभाव नहीं है. चीनियों के पास पहले से ही कोलंबो में हंबनटोटा बंदरगाह तक पहुंच है, और कच्चातिवु एक छोटा सा क्षेत्र है'.
उन्होंने कहा कि इस मामले ने केवल यह दिखाने के लिए ध्यान आकर्षित किया है कि श्रीमती गांधी और कांग्रेस ने तमिलनाडु या देश के हितों को कितनी लापरवाही से संभाला. तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री एम करुणानिधि ने कभी असहमति की आवाज नहीं उठाई. इसके बारे में मेरा मानना है कि यह पूरी तरह से राजनीतिक है. इसमें कोई सुरक्षा उल्लंघन नहीं हुआ है.
जब पूर्व राजनयिक से पूछा गया कि क्या इसका हजारों भारतीय मछुआरों, विशेषकर तमिलनाडु के मछुआरों के जीवन पर प्रभाव पड़ेगा? उन्होंने जवाब दिया, 'कच्चातिवु एक छोटा सा क्षेत्र है, जबकि तमिलनाडु के मछुआरों की पहुंच पूरे बंगाल की खाड़ी तक है'.
पीएम मोदी और अन्य लोग इस सप्ताह की शुरुआत में यह जानकर अप्रसन्न हुए कि कांग्रेस ने कच्चातिवु को श्रीलंका को दे दिया है. इस छोटे, निर्जन द्वीप को महत्वपूर्ण नहीं माना है. यह जानकारी एक आरटीआई अनुरोध पर विदेश मंत्रालय के जवाब से दी गई. इसके तुरंत बाद, विदेश मंत्री डॉ. जयशंकर ने कांग्रेस पर कटाक्ष करते हुए दावा किया कि पार्टी के तत्कालीन प्रधानमंत्रियों ने कच्चातिवु द्वीप के प्रति उपेक्षा दिखाई. कानूनी राय का विरोध करने के बावजूद भारतीय मछुआरों के अधिकारों को सौंप दिया गया.