पटना: नीतीश कुमार जब-जब असहज हुए हैं उन्होंने अपना सियासी पार्टनर बदला है. 2012 में जब नरेंद्र मोदी का प्रधानमंत्री उम्मीदवार के तौर पर नाम आया तब 2013 आते-आते नीतीश कुमार NDAसे 17 साल पुराना नाता तोड़ लिया. यहीं से उन्होंने अपनी सियासत में 'पलटनीति' को अपना अस्त्र बना लिया. तब नीतीश कुमार नरेंद्र मोदी को लोकसभा चुनाव प्रचार अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया गया था. इससे नाराज होकर उन्होंने पहली बार पाला बदल लिया और लालू यादव के साथ मिलकर सरकार बना ली.
असहज होने पर साथ छोड़ते हैं नीतीश : इससे पहले उन्होंने लोकसभा चुनाव में अकले चुनाव लड़ने का ऐलान किया. उस वक्त जेडीयू को महज 2 सीट पर ही जीत हासिल हुई. इस घटना के बाद नीतीश ने नैतिकता का प्रदर्शन करते हुए मुख्यमंत्री पद भी छोड़ दिया और जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री बना दिया. इसी बीच 2015 में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मांझी से विवाद के बाद सीएम बने और महागठबंधन के साथ सरकार मिलकर चुनाव लड़े और सरकार बनाई.
अंतरात्मा की आवाज पर दूसरी बार छोड़ा साथ : अंतर 2017 में लालू परिवार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगने पर एक बार फिर से नीतीश असहज हो गए. इस बार उन्होंने डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव का नाम IRCTC घोटाले में आने पर ही 'अंतरात्मा की आवाज' सुनकर ढाई साल में महागठबंधन की सरकार को गुडबाय कह दिया. तब एनडीए के साथ मिलकर सरकार बनाई.