देहरादून: उत्तराखंड में बारिश के बाद जंगलों की आग भले ही शांत हो गई हो, लेकिन उसका असर अभी तक दिखाई दे रहा है. हालात ये है कि पहाड़ की आबोहवा भी पूरी तरह से दूषित हो चुकी है. जानकार इसके पीछे पिछले चार महीने से जंगलों में लगी आग और पहाड़ में पर्यटकों के वाहनों का बढ़ता दबाव मान रहे है.
दिल्ली, हरियाणा, यूपी, पंजाब और राजस्थान के अलावा देश भर से बड़ी संख्या में पर्यटक शुद्ध आबोहवा और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए उत्तराखंड आते है, लेकिन इस साल जंगलों में लगी आग और वाहनों की बढ़ती भीड़ ने पहाड़ की हवा को भी खराब कर दिया है. झील और खूबसूरत वादियों के साथ-साथ ठंडी हवाओं के लिए जाना-जाने वाले नैनीताल भी वायु प्रदूषण की चपेट में आ गया है.
वायु प्रदूषण पर ज्यादा जानकारी देते हुए दून विश्वविद्यालय के पर्यावरण विभाग के प्रोफेसर डॉ विजय श्रीधर ने बताया कि जिस तरह से उत्तराखंड के हालात है, उसमें यह तो होना ही था. इस साल जिस तरह के उत्तराखंड में वनाग्नि के मामले सामने आए, उससे पहाड़ में भी वायु प्रदूषण बढ़ना लाजमी था.
वातावरण में घुल रही जहरीली गैसें: श्रीधर की माने तो वनान्नि से केवल जंगल का पर्यावरण ही नष्ट नहीं होता है, बल्कि वनाग्नि के धुंए में PM 2.5, NO 2, ओजोन और हाइड्रोकार्बन जैसी गैसों को मिश्रण होता है. दूसरे शब्दों में कहे तो जंगलों की आग से पहाड़ के वातावरण में ब्लैक कार्बन और अन्य प्रदूषित तत्व रोजाना घुल रहे है. इसी वजह से उत्तराखंड के पहाड़ और मैदान दोनों जगहों पर वायु प्रदूषण पहले से ज्यादा दिखाई दे रहा है.
भविष्य के लिए अच्छे संकेत नहीं: श्रीधर ने बताया कि बारिश के बाद वायु प्रदूषण में थोड़ी कमी आई है. फिर भी ये सोचना होगी कि हर साल वनाग्नि की बढ़ती घटनाएं न सिर्फ पर्यावरण के लिए नुकसानदायक है, बल्कि ग्लेशियरों और अन्य प्राकृतिक स्रोतों को भी इस तरह की घटनाओं से नुकसान पहुंचेगा, जो भविष्य के लिए सही नहीं है.
वाहनों के बढ़ते दबाव से प्रदूषण: प्रोफेसर श्रीधर का कहना है कि चारधाम यात्रा के दौरान बड़ी संख्या में पर्यटक उत्तराखंड आते है. ऐसे में पहाड़ों पर वाहनों का दबाव भी बढ़ता है. वाहनों से निकलने वाला धुआं भी वातारण में घुल रहा है. वाहनों के बढ़ते दवाब से उत्तराखंड की आबोहवा को कितना नुकसान पहुंच रहा है, इसकी मॉनिटरिंग भी लगातार की जा रही है.
दूषित होती जा रही नैनीताल की हवा:चिंता की बात ये है कि नैनीताल जैसे पहाड़ी शहर की आबोहवा भी दूषित हो जा रही है. नैनीताल की बिगड़ती आबोहवा को लेकर प्रोफेसर श्रीधर का कहना है कि बीते दिनों कुमाऊं के अल्मोड़ा और नैनीताल में सबसे ज्यादा जंगल जले. इसीलिए वहां पर वायु प्रदूषण काफी बढ़ गया है. पहाड़ में फिलहाल वायु प्रदूषण का जो स्तर मापा गया है, वो हाल फिलहाल के लिहाज से तो बिल्कुल भी सही नहीं है.
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का आंकड़े:
- नैनीताल में PM10 का स्तर 76.77 माइक्रोग्राम प्रति क्यूब मापा गया है.
- पौड़ी में PM10 का स्तर 42.18 माइक्रोग्राम प्रति क्यूब आया है.
- टिहरी की हवा कुछ बेहतर मिली है. यहां PM10 का स्तर 45.42 माइक्रोग्राम प्रति क्यूब मिला है.
- इसके अलावा अल्मोड़ा में PM10 का स्तर 48.47 माइक्रोग्राम प्रति क्यूब रिकॉर्ड किया गया है.
- वहीं, बागेश्वर में PM10 का स्तर 50.7 माइक्रोग्राम प्रति क्यूब मापा गया है.
- उत्तरकाशी में PM10 का स्तर 41.68 माइक्रोग्राम प्रति क्यूब आया है.
- पहाड़ी शहरों में सबसे कम गोपेश्वर में PM10 का स्तर 40.94 माइक्रोग्राम प्रति क्यूब दर्ज किया गया.