जयपुर. रोशनी और खुशियों के महापर्व दीपावली से एक दिन पूर्व नरक चतुर्दशी या रूप चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है. इस दिन सूर्योदय से पहले अलग तरह से स्नान करने का विशेष महत्व है. ऐसी धार्मिक मान्यता है कि इससे मनुष्य को यमलोक के दर्शन नहीं करने पड़ते हैं. ऐसे में आज इस पर्व पर भगवान श्रीकृष्ण, यमराज और बजरंग बली की विधि-विधान से पूजा अर्चना होगी. वहीं महिलाएं और युवतियां सोलह शृंगार करेंगी. वहीं पुरुष भी स्वयं को संवारने में लगे रहेंगे.
पंडित दामोदर शर्मा के अनुसार नरक चतुर्दशी या रूप चतुर्दशी के इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर उबटन और तेल से स्नान करने का खास महत्व है. जिसका शुभ मुहूर्त अलसुबह 5.25 बजे से लेकर 7 बजे तक है. जिसमें स्नान के बाद शुद्ध वस्त्र पहनकर, तिलक लगाकर दक्षिणाविमुख हो कर दिए गए मंत्रों से प्रत्येक नाम से तीन-तीन तिलांजलि देनी होती है. इसे यम तर्पण कहा जाता है. जिससे पाप नष्ट हो जाते है. इसके साथ ही संध्या के समय देवताओं का पूजन कर दीप दान करना चाहिए.
नरक निव्रति के लिए चार बत्तियों वाला दीपक पूर्व दिशा में मुख कर के घर के मुख्य द्वार पर रखना चाहिए. साथ ही ॐ के विभिन्न मंत्रों का जप करना चाहिए. बता दें कि रूप चतुर्दशी घर आंगन के साथ-साथ शारीरिक स्वच्छता और सौंदर्य का प्रतीक त्यौहार है. ऐसे में प्रदोष काल में चौराहे पर घर के बाहर तिल के तेल से भरे 14 दिए ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि देवताओं के मंदिर बाग बगीचे अन्य स्थानों पर जलाना चाहिए.
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नरकासुर के वध से जुड़ी है एक कथा...
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान कृष्ण ने इस दिन 16 हजार कन्याओं का उद्धार किया. ऐसे में 16 हजार कन्याओं को मुक्ति और नरकासुर के वध के उपलक्ष में घर-घर दीप दान की परंपरा शुरू हुई. इसी खुशी में इस दिन महिलाएं सोलह शृंगार करती नजर आती है. नरक चतुर्दशी को रूप चतुर्दशी भी कहते हैं. ऐसी मान्यता है कि इस दिन जल में औषधि मिलाकर स्नान करने और सोलह शृंगार करने से रूप सौंदर्य और सौभाग्य बढ़ता है.