नई दिल्ली : केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को सदन में जानकारी दी कि उनकी सरकार असम सहित पूरे भारत में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) शुरू करेगी. कांग्रेस सहित विपक्षी दलों ने शाह के इस कदम का विरोध किया है.
असम प्रदेश कांग्रेस समिति (APCC) के अध्यक्ष रिपुन बोरा ने कहा, 'हम असम में NRC को फिर से लागू करने का विरोध करेंगे.'
उन्होंने कहा कि असम में 31 अगस्त का अंतिम एनआरसी एक अलग मामला था और वही बात उसी राज्य में फिर नहीं हो सकती.
बोरा ने कहा, 'लंबे समय तक 14 साल के अभ्यास के बाद NRC को असम में लागू किया गया और प्रकाशित किया गया, जिसमें NRC प्रकाशन प्रक्रिया से जुड़े 55000 से अधिक अधिकारियों के साथ 1600 करोड़ रुपये की लागत आई.'
हालांकि उन्होंने यह भी कहा, 'असम में अवैध विदेशियों के लिए कटौती की तारीख 25 मार्च, 1971 थी और मुझे नहीं लगता कि सरकार अवैध विदेशियों का पता लगाने के लिए अखिल भारतीय स्तर के एनआरसी को ले जाने के लिए एक ही समय पर विचार करेगी.
गौरतलब है कि 31 अगस्त को सरकार ने असम में 19 लाख से अधिक लोगों को छोड़कर अंतिम एनआरसी सूची प्रकाशित की है.
पढ़ें : कांग्रेस के NRC विरोध पर अमित शाह का तंज, कहा - घुसपैठिए मौसेरे भाई लगते हैं क्या?
बोरा ने कहा, सरकार को अब वास्तविक भारतीयों का पता लगाना चाहिए जिन्हें अंतिम एनआरसी सूचियों से बाहर रखा गया है और एक ही सूची में उनके नाम शामिल हैं.
वास्तव में, असम में NRC को ऐतिहासिक असम समझौते के एक खंड को लागू करने के लिए किया गया था.
इस समझौते पर 1985 में भारत सरकार, असम सरकार और ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) के बीच वर्षों पुराने असम आंदोलन को समाप्त करने के लिए हस्ताक्षर किये गये थे.
अंतिम NRC सूची सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में प्रकाशित हुई थी.
हालांकि, गृह मंत्री अमित शाह के राज्यसभा में दिये गये बयान से पूरे भारत में तीखी प्रतिक्रियाएं मिलने की संभावना है.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पहले ही घोषणा कर चुकी हैं कि उनकी सरकार राज्य में एनआरसी को नहीं स्वीकार करेगी.
ममता ने नरेंद्र मोदी सरकार पर NRC और नागरिकता संशोधन विधेयक (CAB) के नाम पर 'धार्मिक राजनीति' खेलने का भी आरोप लगाया.