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क्यों जापानी पब्लिक हेल्थ इंस्टीट्यूट भारत के NICED के साथ गठजोड़ करना चाहता है? - Japanese public health

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By Aroonim Bhuyan

Published : Apr 27, 2024, 5:06 PM IST

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Japanese Public Health Tie Up With NICED: जापानी अखबार योमीउरी शिंबुन की एक रिपोर्ट के अनुसार जापान का राष्ट्रीय संक्रामक रोग संस्थान (NIID) एक नेटवर्क स्थापित करने की योजना बना रहा है, जिसकी शुरुआत भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के कोलकाता स्थित भारत के राष्ट्रीय हैजा और आंत्र रोग संस्थान से होगी.

नई दिल्ली: कोविड-19 महामारी के मद्देनजर जब जापान वायरस की विशेषताओं के बारे में पर्याप्त जानकारी इकठ्ठी नहीं कर सके तो जापान के एक प्रमुख पब्लिक हेल्थ इंस्टीटियूशन ने इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ कॉलरा और एंट्रिक डिसिसीज इंफॉर्मेशन के साथ साझेदारी करने और जानकारी शेयर करने का विकल्प चुना है. ऐसे में सवाल है कि जापान ने इस विशेष भारतीय संस्थान को ही क्यों चुना? इससे भारत को क्या फायदा होगा?

जापानी अखबार योमीउरी शिंबुन की एक रिपोर्ट के अनुसार जापान का राष्ट्रीय संक्रामक रोग संस्थान (NIID) एक नेटवर्क स्थापित करने की योजना बना रहा है, जिसकी शुरुआत भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के कोलकाता स्थित भारत के राष्ट्रीय हैजा और आंत्र रोग संस्थान से होगी.

योमीउरी शिंबुन की रिपोर्ट में कहा गया है, 'कोरोना वायरस महामारी के दौरान संक्रमण राष्ट्रीय सीमाओं के पार फैल गया, जबकि देश वायरस की विशेषताओं के बारे में पर्याप्त रूप से जानकारी इकट्ठा करने में असमर्थ थे.' इसने एनआईआईडी को एक नेटवर्क बनाने के लिए प्रेरित किया. इसकी शुरुआत 2023 में शुरू हो गई थी. इसे 2026 की शुरुआत में लॉन्च किया जाएगा.

रिपोर्ट के मुताबिक, फिलहाल एनआईआईडी ICMR-NICED समेत तीन अन्य संस्थानों के सहयोग से संक्रामक रोगों की घटनाओं की जांच करेगा और वायरस और बैक्टीरिया जैसे बैक्टीरिया पर डेटा जमा करेगा. यह टेस्टिंग मैथड को विकसित करने और टेक्नोलॉजी में सुधार करने का भी प्रयास करेगा.

नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ इंफेक्शन डिजीज क्या है?
एनआईआईडी एक सरकारी रिसर्च इंस्टिट्यूट है, जो जापान में संक्रामक रोगों की निगरानी और उससे संबंधित रिसर्च करता है. यह स्वास्थ्य, लेबर और कल्याण मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र के तहत संचालित होता है और सार्वजनिक स्वास्थ्य और रोग नियंत्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.

NIID की स्थापना 1981 में संक्रामक रोगों से संबंधित कई मौजूदा रिसर्च संस्थानों के विलय के माध्यम से की गई थी. इसका मुख्यालय टोक्यो में है और इसकी प्राथमिक सुविधा शिंजुकु में स्थित है. यह संस्थान इंफेक्शन डिजिज रिसर्च का केंद्र है.

इंफेक्शन संबंधित रिसर्च करता है संस्थान
संस्थान उभरते रोगजनकों सहित अलग-अलग इंफेक्शन रोगों की रिसर्च करता है. इसमें वायरोलॉजी, बैक्टीरियोलॉजी और इम्यूनोलॉजी शामिल है. संस्थान के पास इनसे संबंधित प्रयोगशालाएं और रिसर्च ग्रुप हैं. रिसर्च के निष्कर्ष लोगों के इलाज और टीकों के विकास में योगदान करते हैं. एनआईआईडी ग्लोबल हेल्थ से जुड़े मुद्दों के समाधान के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ), रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (सीडीसी) और अन्य रिसर्च संस्थानो के साथ सहयोग करता है.

नेशनल इंस्टिटियूट ऑफ कॉलरा एंड एंट्रिक डिजिज क्या है?
इसे मूल रूप से 1962 में हैजा अनुसंधान केंद्र के रूप में स्थापित किया गया था. हालांकि, 1979 में इसका नाम बदलकर एनआईसीईडी कर दिया गया. यह रिसर्च का काम करता है और एंट्रिक रोगों और एचआईवी/एड्स से संबंधित रोकथाम, उपचार और नियंत्रण करने की रणनीति विकसित करता है. NICED का मुख्यालय कोलकाता में स्थित है. WHO ने 1980 में इस संस्थान को डायरिया रोगों पर रिसर्च और ट्रेनिंग के लिए WHO सहयोगात्मक केंद्र के रूप में मान्यता दी थी.

NICED अलग-अलग तकह के डायरिया रोगों के साथ-साथ टाइफाइड बुखार, हेपेटाइटिस और एचआईवी/एड्स से संबंधित बीमारियों पर रिसर्च करता है. इस संस्थान का उद्देश्य इन बीमारियों पर बुनियादी और व्यावहारिक दोनों पहलुओं पर शोध करना है. संस्थान डायरिया संबंधी बीमारियों को बेहतर ढंग से मैनेज करने, उनकी रोकथाम और एटियोलॉजिकल एजेंटों के त्वरित और सही निदान के लिए ट्रेनिंग देता है.

NIID और ICMR-NICED के गठजोड़ से भारत को क्या लाभ?
ईटीवी भारत से बात करते हुए आईसीएमआर-एनआईसीईडी ने कहा कि वह और जापान का एनआईआईडी विभिन्न संक्रामक रोगों पर रिसर्च करते हैं. बयान में कहा गया है, 'दोनों संस्थानों का उद्देश्य मृत्यु दर को कम करने के लिए समाधान प्रदान करना है. इसके लिए संस्थान महामारी विज्ञान, इम्यूनिटू साइंस, इम्यूनोलॉजी और संक्रामक रोगजनकों का अध्ययन करता है.

इसमें आगे कहा गया है कि एनआईआईडी और आईसीएमआर-एनआईसीईडी के बीच गठजोड़ पूरी तरह से संक्रामक रोगों से लड़ने की दिशा में संयुक्त रूप से काम करने के लिए एक शोध में सहयोग करना है. इस सहयोगात्मक शोध को स्वास्थ्य मंत्रालय स्क्रीनिंग कमेटी और भारत सरकार द्वारा फंड दिया है.

आईसीएमआर-एनआईसीईडी के बयान में कहा गया है कि वह भारतीय वैज्ञानिकों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने के लिए सशक्त बनाने के लिए एनआईआईडी ने नई टेक्नोलॉजी की ट्रेनिंग देकर मानव संसाधनों को मजबूत करके सहयोगी नेटवर्क भारत को लाभान्वित करता है.

साझेदारी के लिए एनआईआईडी ने आईसीएमआर-एनआईसीईडी को क्यों चुना ?
आईसीएमआर-एनआईसीईडी ने कहा कि 1981 से डायरिया रोग रिसर्च क्षेत्र में जापानी शोधकर्ताओं के साथ उसका कॉलेब्रेशन है. एनआईसीईडी ने 1998 से 2008 तक जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी की ओर से समर्थित आईसीएमआर के माध्यम से मल्टी डिसिपलिनरी परियोजना के तीन चरणों को लागू किया है, जापान सरकार ने संस्था को एक अत्याधुनिक इमारत गिफ्ट में दी, जिसमें अत्याधुनिक उपकरणों से लेस एडवांस लेबोरेटरी भी शामिल थीं.

जेआईसीए परियोजना के दौरान आईसीएमआर-एनआईसीईडी की प्रगति के आधार पर जापान के ओकायामा विश्वविद्यालय ने 2007 में मेडिकल रिसर्च के माध्यम से एनआईसीईडी के साथ उभरते संक्रामक रोगों पर अध्ययन करने के लिए एक परियोजना शुरू की थी. बयान में आगे कहा गया है कि 2011 में आईसीएमआर-एनआईसीईडी और एनआईआईडी ने एशिया में इंफेकशन रोगों के लिए लेबोरेटरी-बेस्ड कॉलेब्रेशन नेटवर्क नामक एक रिसर्च परियोजना शुरू की थी.

ये सभी अनुसंधान परियोजनाएं एचएमएससी से मंजूरी मिलने के बाद शुरू की गईं. लंबे समय से चले आ रहे भारत-जापानी सहयोग को जारी रखते हुए एनआईआईडी आईसीएमआर-एनआईसीईडी के साथ गठजोड़ करने की योजना भी बना रहा है.

इस साझेदारी में NICED क्या भूमिका निभा सकता है?
आईसीएमआर-एनआईसीईडी के अनुसार यह भारत में संक्रामक रोग अनुसंधान में मौजूदा प्राथमिकताओं को निर्धारित करने के लिए एनआईआईडी के साथ मिलकर काम करेगा. आईसीएमआर-एनआईसीईडी ने कहा, "शोध के विषय एंटी माइक्रोबियास, बेक्टीरिया इंफेक्शन रोगों की रोकथाम और नियंत्रण हैं. आईसीएमआर-एनआईसीईडी बेक्टीरिया की पहचान करने और रोगाणुरोधी प्रतिरोध के प्रसार को नियंत्रित करने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा."

NICED ने बताया कि यह अध्ययन बीमारी के बोझ को मापने पर केंद्रित होगा. इसके अलावा इसमें नए निदान और उपचार विज्ञान का विकास करना, रिसर्ज जैसे प्रबंधन कार्यक्रम, स्वास्थ्य देखभाल कर्मियों के बीच जागरूकता पैदा करना और टीका परीक्षण का शामिल होगा.

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