ETV Bharat / state

उत्तराखंड की राजनीति में 'ख' और 'ब' का गणित, जानिये इसके मायने - Brahman Thakur formula in politics

Brahman Thakur formula in politics, Uttarakhand Lok Sabha elections देशभर में चुनावी शोर है. राजनीतिक दल वोटर्स को लुभाने के लिए तरह तरह के गठबंधन बना रहे हैं. उत्तराखंड में ऐसे ही एक गणित है जिसे हमेशा ध्यान में रखा जाता है. ये गणित 'ख' और 'ब' का है.

Etv Bharat
उत्तराखंड की राजनीति में 'ख' और 'ब' का गणित
author img

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Apr 18, 2024, 6:31 PM IST

Updated : Apr 18, 2024, 10:46 PM IST

देहरादून: देश में इन दिनों लोकसभा चुनाव चल रहे हैं. उत्तराखंड में 19 अप्रैल को पहले चरण में वोटिंग होनी है. उससे पहले सभी सियासी दल मतदाताओं को लुभाने की कोशिश में जुटे हैं. मतदाताओं को लुभाने के साथ भी राजनीतिक दल जातीय समीकरण को भी साधने में जुटे हैं. देशभर में हिंदू, मुसलमान, तिलक तराजू और तलवार, पीडीए(पिछड़े, दलित व अल्पसंख्यक), एमवाई( मुसलमान, यादव) का गणित बनाकर वोटर्स को साधने की कोशिश की जा रही है. उत्तराखंड के चुनावों में ख और ब का गणित चलता है. क्या है ये 'ख' और 'ब' का गणित, आइये आपको बताते हैं.

बात अगर उत्तराखंड की राजनीति की करें तो ख और ब गणित सीएम, नेता प्रतिपक्ष, प्रदेश अध्यक्ष बनाते समय भी ध्यान में रखा जाता है. ये गणित इतना अहम है कि इससे कुमाऊं और गढ़वाल मंडल को साधा जाता है. विधानसभा, लोकसभा चुनाव में भी जमकर 'ख' और 'ब' का गणित चलता है. सीधे तौर पर कहे तो 'ख' और 'ब' के गणित से ही उत्तराखंड की राजनीति के समीकरणों को साधा जाता है.

क्या होता है ख-ब: उत्तराखंड की राजनीति में जिस ख और ब के गणित की बात हो रही है इसमें ख का अर्थ खस्या से हैं. खस्या को राजपूत, ठाकुरों से जोड़कर देखा जाता है. वहीं, ब का अर्थ ब्राह्मणों से है. उत्तराखंड में मंडल, क्षेत्र के साथ ही इन ख और ब का खास ध्यान रखा जाता है.

उदाहरण के तौर पर उत्तराखंड गठन के बाद पहले विधानसभा चुनाव में ब्राह्मण समाज से नारायण दत्त तिवारी सीएम बने. तब कांग्रेस ने हरीश रावत को प्रदेश अध्यक्ष बनाया. वे ठाकुर हैं.

साल 2007 में भाजपा ने सरकार बनाई. तब भाजपा ने भुवन चंद्र खंडूड़ी को मुख्यमंत्री बनाया. भुवन चंद्र खंडूड़ी ब्राह्मण हैं. वहीं, ठाकुर नेता बची सिंह रावत को प्रदेश अध्यक्ष बनाया. इसके बाद ब्राह्मण नेता रमेश पोखरियाल निशंक मुख्यमंत्री बने. तब ठाकुर नेता बिशन सिंह चुफाल बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष बने.

2012 में विजय बहुगुणा (ब्राह्मण नेता) मुख्यमंत्री बने. तब कांग्रेस ने यशपाल आर्य को प्रदेश अध्यक्ष बनाया. इसके बाद हरीश रावत राज्य के मुख्यमंत्री बने. तब किशोर उपाध्याय (ब्राह्मण नेता) को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया.

2017 में त्रिवेंद्र सिंह रावत (ठाकुर नेता) मुख्यमंत्री बने. कुमाऊं से आने वाले ब्राह्मण नेता अजय भट्ट को प्रदेश अध्यक्ष बनाया. इसके बाद भी ख और ब के समीकरणों को बनाया गया.

इस लोकसभा चुनाव की बात करें तो पौड़ी गढ़वाल में बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने ब्राह्मण चेहरों पर दांव खेला है. वहीं, टिहरी सीट पर बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने राजपूतों को टिकट दिया है. हरिद्वार सीट पर भी ठाकुरों को ही टिकट दिया गया है. नैनीताल सीट पर बीजेपी कांग्रेस ने ब्राह्मण नेताओं को चुनावी मैदान में उतारा है.

बता दें, पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में 35 फीसदी ठाकुर वोटर्स हैं. वहीं, ब्राह्मण वोटर्स की संख्या 25 फीसदी के आसपास है. दोनों को अगर मिलाकर देखा जाए तो ये जातीय समीकरण सरकार बनाने और बिगाड़ने के लिए काफी है. यही कारण है कि उत्तराखंड में हमेशा ही इस ख और ब के समीकरण को ध्यान में रखा जाता है.

पढे़ं-उत्तराखंड में गढ़वाल-कुमाऊं और ठाकुर-ब्राह्मण के इर्द-गिर्द रहती है राजनीति, केंद्र भी रखता है जातीय समीकरण पर नजर

देहरादून: देश में इन दिनों लोकसभा चुनाव चल रहे हैं. उत्तराखंड में 19 अप्रैल को पहले चरण में वोटिंग होनी है. उससे पहले सभी सियासी दल मतदाताओं को लुभाने की कोशिश में जुटे हैं. मतदाताओं को लुभाने के साथ भी राजनीतिक दल जातीय समीकरण को भी साधने में जुटे हैं. देशभर में हिंदू, मुसलमान, तिलक तराजू और तलवार, पीडीए(पिछड़े, दलित व अल्पसंख्यक), एमवाई( मुसलमान, यादव) का गणित बनाकर वोटर्स को साधने की कोशिश की जा रही है. उत्तराखंड के चुनावों में ख और ब का गणित चलता है. क्या है ये 'ख' और 'ब' का गणित, आइये आपको बताते हैं.

बात अगर उत्तराखंड की राजनीति की करें तो ख और ब गणित सीएम, नेता प्रतिपक्ष, प्रदेश अध्यक्ष बनाते समय भी ध्यान में रखा जाता है. ये गणित इतना अहम है कि इससे कुमाऊं और गढ़वाल मंडल को साधा जाता है. विधानसभा, लोकसभा चुनाव में भी जमकर 'ख' और 'ब' का गणित चलता है. सीधे तौर पर कहे तो 'ख' और 'ब' के गणित से ही उत्तराखंड की राजनीति के समीकरणों को साधा जाता है.

क्या होता है ख-ब: उत्तराखंड की राजनीति में जिस ख और ब के गणित की बात हो रही है इसमें ख का अर्थ खस्या से हैं. खस्या को राजपूत, ठाकुरों से जोड़कर देखा जाता है. वहीं, ब का अर्थ ब्राह्मणों से है. उत्तराखंड में मंडल, क्षेत्र के साथ ही इन ख और ब का खास ध्यान रखा जाता है.

उदाहरण के तौर पर उत्तराखंड गठन के बाद पहले विधानसभा चुनाव में ब्राह्मण समाज से नारायण दत्त तिवारी सीएम बने. तब कांग्रेस ने हरीश रावत को प्रदेश अध्यक्ष बनाया. वे ठाकुर हैं.

साल 2007 में भाजपा ने सरकार बनाई. तब भाजपा ने भुवन चंद्र खंडूड़ी को मुख्यमंत्री बनाया. भुवन चंद्र खंडूड़ी ब्राह्मण हैं. वहीं, ठाकुर नेता बची सिंह रावत को प्रदेश अध्यक्ष बनाया. इसके बाद ब्राह्मण नेता रमेश पोखरियाल निशंक मुख्यमंत्री बने. तब ठाकुर नेता बिशन सिंह चुफाल बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष बने.

2012 में विजय बहुगुणा (ब्राह्मण नेता) मुख्यमंत्री बने. तब कांग्रेस ने यशपाल आर्य को प्रदेश अध्यक्ष बनाया. इसके बाद हरीश रावत राज्य के मुख्यमंत्री बने. तब किशोर उपाध्याय (ब्राह्मण नेता) को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया.

2017 में त्रिवेंद्र सिंह रावत (ठाकुर नेता) मुख्यमंत्री बने. कुमाऊं से आने वाले ब्राह्मण नेता अजय भट्ट को प्रदेश अध्यक्ष बनाया. इसके बाद भी ख और ब के समीकरणों को बनाया गया.

इस लोकसभा चुनाव की बात करें तो पौड़ी गढ़वाल में बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने ब्राह्मण चेहरों पर दांव खेला है. वहीं, टिहरी सीट पर बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने राजपूतों को टिकट दिया है. हरिद्वार सीट पर भी ठाकुरों को ही टिकट दिया गया है. नैनीताल सीट पर बीजेपी कांग्रेस ने ब्राह्मण नेताओं को चुनावी मैदान में उतारा है.

बता दें, पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में 35 फीसदी ठाकुर वोटर्स हैं. वहीं, ब्राह्मण वोटर्स की संख्या 25 फीसदी के आसपास है. दोनों को अगर मिलाकर देखा जाए तो ये जातीय समीकरण सरकार बनाने और बिगाड़ने के लिए काफी है. यही कारण है कि उत्तराखंड में हमेशा ही इस ख और ब के समीकरण को ध्यान में रखा जाता है.

पढे़ं-उत्तराखंड में गढ़वाल-कुमाऊं और ठाकुर-ब्राह्मण के इर्द-गिर्द रहती है राजनीति, केंद्र भी रखता है जातीय समीकरण पर नजर

Last Updated : Apr 18, 2024, 10:46 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.